आलोक यादव, शिक्षा वाहनी समाचार पत्र।
तुम्हारे लिए बारिश मौसमी मिज़ाज़ होगी,
गरीब के जख्मो पर तो नमक छिड़क गया।
दुआ करो हालात कुछ अच्छे हो जायें
मिट्टी का घर था मेरा बारिश में ढह गया,
हुकूमती दस्तावेजों में हर घर चंगा लिखा है,
सच है किसान भूखा गरीब नंगा मर गया।
फूल का मिज़ाज़ बदला रुत भी चली गयी,
एक शख्स हमसे रूठा हर कुछ बदल गया,
तुम्हारा किरदार मोती तुम खुद में हीरा हो,
ये खुद को समझाने में मैं हद से गुज़र गया।
जिंदगी हमारी भी किसी दिन रंग लाएगी,
मैं यही सोंचता रहा वो वक्त निकल गया।
जुगनुओं के शहर में रौशनी कम नही थी,
ये इत्तेफ़ाक समझना चांद को भारी पड़ गया।
उम्र भर मैं दूसरों में कमियां निकालता रहा,
खुद को मुड़कर देखा मैं सोंच में पड़ गया।
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