अमित डोगरा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
पौराणिक वृतांतो के अनुसार त्रेता युग में भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म भृगु श्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा संपन्न पुत्रेष्टि यज्ञ द्वारा रेणुका के गर्भ से मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में माना जाता है। वह भगवान विष्णु के आवेशावतार अवतार भी माने जाते है। शिव द्वारा प्रदत परशु धारण करने के कारण उन्हें परशुराम भी कहा जाता है। वे शस्त्र विद्या के महान गुरु भी थे। उन्होंने एकादशी युक्त शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र भी लिखा। उन्होंने अपने प्रिय शिष्य के सहयोग से विराट नारी जागृति अभियान का संचालन भी किया। राजा प्रसेनजीत की पुत्री रेणुका और भृगु वंशीय जमदग्नि के पुत्र परशुराम शिव के परम भक्त माने जाते हैं ।उन्होंने शिव से विशेष परशु प्राप्त किया था। पुराणों के अनुसार परशुराम ने अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी माता से ही अधिकांश विद्या ग्रहण कर ली थी, यह पशु पक्षियों तक की भाषा की समझ लेते थे और उनसे बात कर सकते थे । परशुराम का उल्लेख रामायण ,महाभारत ,भागवत पुराण और कल्कि पुराण आदि अनेक ग्रंथों में किया गया है। वे पृथ्वी पर वैदिक संस्कृति का प्रचार प्रसार करना चाहते थे। कहां भी जाता है कि भारत के अधिकतर गांव उन्हीं के द्वारा बसाये गए हैं । वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी संतानों में से एक माने जाते थे, जो सदा अपने माता-पिता, गुरुजनों की आज्ञा का पालन करते थे। उनका उद्देश्य जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवंत बनाए रखना था । भारतीय संस्कृति के धार्मिक स्त्रोतों में परशुराम से संबंधित अनेक किवदंतिया पढ़ने को मिलती है ।उनका लक्ष्य सदैव धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना रहा । वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्मे अवश्य थे, पर अपने कर्मों से वह एक क्षत्रिय थे, इसलिए उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।।
पीएचडी शोधकर्ता, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर