कोरोना! तुझे क्या कहूँ

लवी अग्रवाल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

कोरोना! तुझे क्या कहूं

बीमारी कहूं कि बहार कहूं

पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं

संतुलन कहूं कि संहार कहूं

कहो तुझे क्या कहूं

मानव जो उदंड था

पाप का प्रचंड था

सामर्थ का घमंड था

मानवता को कर रहा खंड खंड था

नदियां सारी त्रस्त थी

सड़के सारी व्यस्त थी

जंगलों में आग थी

हवाओं में राख थी

कोलाहल का स्वर था

खतरे में जीवो का घर था

चांद पर पहले थे

वसुधा के दर्द बड़े गहरे थे

फिर अचानक तू आई

मृत्यु का खौफ लाई

मानवों को डराई

विज्ञान भी घबराई

लोग यूं मरने लगे

खुद को घरों में भरने लगे

इच्छाओं को सीमित करने लगे

प्रकृति से डरने लगेअब लोग सारे बंद है

नदिया स्वच्छंद है

हवाओं में सुगंध है

वनों में आनंद है

जीव सारे मस्त हैं

वातावरण भी स्वस्थ है

पक्षी स्वरों में गा रहे

तितलियां इतरा रही

अब तुम ही कहो तुझे क्या कहूं

बीमारी कहूं कि बहार कहूं

पीड़ा कहूं कि त्यौहार कहूं

संतुलन कहूं कि संहार कहूँ

कहो तुझे मैं क्या कहूं

 

राष्ट्रीय निदेशक एंटी करप्शन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया

मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश

Comments