चिकित्सा की सबसे बेहतरीन एवं प्राचीन पद्धति विश्व हेम्योपेथी दिवस 10 अप्रैल को


राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

भारतीय आयुर्वेद में अनेकों दिव्य औषधीय गुणों वाली वनस्पतियां वर्णित है। इन्ही दिव्य गुणों वाली वनस्पतियों में एक है  होम्योपैथी, जिसका अस्तित्व है तो सृष्टिकाल से, परन्तु इसकी खोज अठारहवीं सदी के पूर्वार्ध कालीन समय अवधि में हुई।  होम्योपैथी के खोजकर्ता डॉक्टर हैनिमैन थे, जिनका जन्म 10 अप्रैल को हुआ था। इन्हीं के जन्म दिन पर समस्त विश्व में विश्व होम्योपैथी दिवस प्रतिवर्ष 10 अप्रैल को ही मनाया जाता है। होम्योपैथी पद्धति द्वारा की जाने वाली चिकित्सा बहुत से देश आजमाते आ रहे हैं। इसका अविष्कार भले ही जर्मनी के डॉक्टर के द्वारा किया गया था, परन्तु भारतीय सनातन ऋषियों ने इसकी खोज युगों पूर्व ही कर दी थी। 

होम्योपैथी पद्धति चिकित्सा के उस समरस आधार पर कार्य करती है, जिसके चलते औषधियां किसी भी रोग से उत्पन्न प्रभाव को जड़ से खत्म करने में सक्षम है। रोगों के सही लक्षण अगर सामने आ जाए तो होम्योपैथी पद्धति द्वारा उपचार किसी वरदान से कम नहीं। होम्योपैथी दवा शरीर के किसी भी अंगों पर हानि नहीं पहुंचाती है। आज तक के शोध से यह बात भी सामने आई है कि असाध्य रोगों में होम्योपैथी दवा प्रकृति की अमूल्य धरोहर होकर रोगी के लिए वरदान से कम नहीं।


रोगों को हरने की पूर्णत: क्षमता

भारतीय साहित्य का सबसे प्राचीनतम वेद ऋग्वेद है। ऋग्वेद के कुछ समय पश्चात आयुर्वेद की रचना हुई। आयुर्वेद का रचना काल सृष्टि के आरंभिक समय अवधि में माना जाता है। सनातन ऋषयों ने मानव कल्याणार्थ आयुर्वेद को धरती पर उतारा था। आयुर्वेद के मूल आचार्य अश्वनीकुमार माने जाते हैं, इन्हीं अश्वनीकुमारों के कारण क्रम अनुसार परम्परानुसार आज भी धरती पर ग्रन्थ के रूप में एवं रोगों के निदान करने हेतु प्रत्यक्ष कार्यशैली में इसका प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार होम्योपैथी दवा को पशुओं ,वनस्पति, जड़ी बूटी, खनिज के अवशेष एवं प्रकृति की दिव्य वनस्पतियों की उच्च स्तरीय ऊर्जिय विधि से तैयार करके चिकित्सा के क्षेत्र में लाया जाता है।


संस्कृति संरक्षक, आनी (कुल्लू) हिमाचल प्रदेश

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