संध्या कुमारी, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
क्यों होता है ऐसा ?
मैं तो चहकती चिडियां हूं
अपने बाबूल के बगिया की
लाडली हूं मैं अपने भाई की
सब करते है मुझसे कितना प्यार,
फिर भी क्यों होता है ऐसा
जब तक थी मा-पापा के घर
कितना पहरा लगाया जाता था मुझ पर,
न थी कोई आजादी, न भर सकती थी मैं उड़ान
क्यों होता है ऐसा
क्या कसूर था मेरा
सिर्फ इतना कि मैं बेटी थी
मेरे बोलने से, मेरे आजादी से,
मेरी उड़ान से
होती थी कम पापा की इज्जत
जब गई ब्याह के मैं ससुराल
वहां भी वही पहरा
न था कोई अपना अस्तित्व मेरा
न थी कोई मेरी पहचान
किसी से बोलना, कहीं भी जाना,
मेरे लिए क्यों है अपराध
सिर्फ बेटी होने के कारण
क्यों बना रखा है समाज ने हमें गुलाम,
क्यों लगा दिया है पाबंदी इतनी
क्या गुनाह है ? बेटी होना
देख विधाता तू देख दुर्दशा मेरी
तुमने भेजा लक्ष्मी, दूर्गा ,
का रुप बनाकर
तेरे ही बनाए पूतलो ने
बना दिया क्या तेरा लक्ष्मी का हाल,
बचपन से छीन ली आजादी
युवावस्था में भी लगाया लगाम
क्या मेरे जीवन पर थोड़ा भी हक नही है मेरा,
बचपन में पापा की नफरत
जवानी में पति की डाॅट
बुढापे में बेटे का बुरा व्यवहार
क्या यही रह गई
एक बेटी का अस्तित्व,
क्या यही है एक बेटी की पहचान
क्यों नही मिलता हर बेटी को सम्मान
क्यों होता है ऐसा
लुधियाना, पंजाब