मनमोहन शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
इस कदर छाया अँधेरा
कि डरने लगा सवेरा
फैले फणीश विषैले
जाने कहाँ है सपेरा?
रात काटी शिद्दत से
उगा न सूरज मुद्दत से
किसे व्यथा सुनाएं
आओ दीप जलाएँ।
जले जो दीया दहलीज पर
छंटेंगा अँधेरा खीज कर
ऐसा ही कुछ करके
उज्ज्वलता की उम्मीद जगाएँ
आओ दीप जलाएँ।
है कोरोना पर डरो न
चुप बैठो कुछ करो न
उचित दूरी बनाकर
सुरक्षा चक्र बनाएँ
आओ दीप जलाएँ
न दीप दिवाली धनतेरस का
ये दीप इंसान बेबस का
मानवता पर भारी इस दौर में
'अटल जी' की ये कविता पढ़ें व दोहराएं
कि "भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ"
आओ दीप जलाएँ।
कुसुम्पटी शिमला-9
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