शिवपुराण से....... (233) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता (प्रथम सृष्टिखण्ड़)


श्रीहरि को सृष्टि की रक्षा का भार एवं भोग-मोक्ष दान का अधिकार दे भगवान् शिव का अन्तर्ध्यान होना.....


गतांक से आगे............


हमें अनेक प्रकार के वर दिये। इसके बाद भक्तवत्सल भगवान् शम्भु कृपापूर्वक हमारी ओर देखकर हम दोनों के देखते-देखते सहसा वहीं अन्तर्ध्यान हो गये। तभी से इस लोक में लिंगपूजा का विधान चालू हुआ है। लिंग में प्रतिष्ठित भगवान् शिव भोग और मोक्ष देने वाले हैं। शिवलिंग की जो वेदी या अर्घा है, वह महादेवी का स्वरूप है और लिंग साक्षात् महेश्वर का। लय का अधिष्ठान होने के कारण भगवान् शिव को लिंग कहा गया है, क्योंकि उन्हीं में निखिल जगत का लय होता है। महामुने! जो शिवलिंग के समीप कोई कार्य करता है, उसके पुण्यफल का वर्णन करने की शक्ति मुझमें नहीं है।   ;अध्याय- 10द्ध
शिवपूजन की विधि तथा उसका फल.............
ऋषि बोले-व्यासशिष्य महाभाग सूतजी! आपको नमस्कार है। आज आपने भगवान् शिव की बडी अद्भुत कथा सुनायी है। दयानिधे! ब्रह्मा और नारदजी के संवाद के अनुसार आप हमें शिवपूजन की वह विधि बताईये, जिससे यहां भगवान् शिव संतुष्ट होते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-सभी शिव की पूजा करते हैं। वह पूजन कैसे करना चाहिए? आपने व्यासजी के मुख से इस विषय को जिस प्रकार सुना हो, वह बताईये।
महर्षियों का वह कल्याणप्रद एवं श्रुतिसम्मत वचन सुनकर सूतजी ने उन मुनियों के प्रश्न के अनुसार सब बाते प्रसन्नतापूर्वक बतायीं।        (शेष आगामी अंक में)


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