शिवपुराण से....... (231) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता (प्रथम सृष्टिखण्ड़)


श्रीहरि को सृष्टि की रक्षा का भार एवं भोग-मोक्ष दान का अध्किार दे भगवान् शिव का अन्तर्धन होना.........


गतांक से आगे............
तुम रूद्र के ध्येय हो और रूद्र तुम्हारे ध्येय हैं। तुममें और रूद्र में कुछ भी अन्तर नहीं है। 
रूद्रध्येयो भवांद्धयेयो हरस्तथा। 
युवयोरन्तरं नैव तव रूद्रस्य किंचन।।   (शि.पु.रू.सृ.सं 10/6)
जो मनुष्य रूद्र का भक्त होकर तुम्हारी निन्दा करेगा, उसका सारा पुण्य तत्काल भस्म हो जायेगा। पुरूषोत्तम विष्णो! तुमसे द्वेष करने के कारण मेरी आज्ञा से उसका नरक में गिरना पडेगा। यह बात सत्य है, सत्य है। इसमें संशय नहीं है। 
रूद्रभक्तो नरो यस्तु तव निन्दां करिष्यति।


तस्य पुण्यं च निखिलं द्रुतं भस्म भविष्यति।। 
नरके पतनं तस्य त्वद्द्वेषात्पुरूषोत्तम।


मदाज्ञया भवेद्विष्णो सत्यं न संशय।।   (शि.पु.रू.सृ.सं 10/8-9)
तुम इस लोक में मनुष्यों के लिए विशेषतः भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले और भक्तों के ध्येय तथा पूज्य होकर प्राणियों का निग्रह और अनुग्रह करो। 
ऐसा कहकर भगवान् शिव ने मेरा हाथ पकड़ लिया और श्रीविष्णु को सौंपकर उनसे कहा-तुम संकट के समय सदा इनकी सहायता करते रहना। सबके अध्यक्ष होकर सभी को भोग और मोक्ष प्रदान करना तथा सर्वदा समस्त कामनाओं का साध्क एवं सर्वश्रेष्ठ बने रहना।                            


(शेष आगामी अंक में)


Post a Comment

Previous Post Next Post