शिक्षको की गुणवत्ता पर विचार कब


आशुतोष, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


आज नियोजित शिक्षको की माँग पर राज्य सरकार विचार करना चाहती है। शायद यह जरूरी भी है, लेकिन उन मासूम विद्यार्थियों पर भी सरकार को विचार करना चाहिए जो अयोग्य शिक्षको से शिक्षा ले रहे हैं। आजकल कई ऐसे प्रकरण हाल के दिनो में उजागर हो रहे हैं, जिसमें शिक्षको के गिरते निम्न स्तरीय शिक्षा को दर्शाता है। सरकार को स्तरीय परीक्षाओं के जरिये ही शिक्षको की नियुक्ति करनी चाहिए। नियोजित शिक्षको को भी स्तरीय परीक्षा दिलवाकर वेतन बढ़ाया जाना ज्यादा कारगर होगा, इससे वैसे लोग जो इस गिरती शिक्षा प्रणाली के दीमक है खुद छट जाएँगे और योग्यता को आगे आने के रास्ते खुलेंगे।शिक्षक राष्ट्र निर्माता होते है, उनमें भी अगर कुछ अयोग्य शामिल है तो यह राज्य सरकार की जिम्मेवारी है कि वैसे लोगो के निष्कासन के विकल्प पर विचार किया जाये तथा योग्य और स्तरीय शिक्षको की तालाश की जाये, जो सिर्फ प्रतियोगिता परीक्षा से ही संभव है। जहाँ तक नियोजित शिक्षको की बात है, उनकी बहाली प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर नही हुई थी, जबकि उनकी माँग प्रतियोगिता शिक्षक जैसी है, इसलिए सरकार को प्रतियोगिता का आयोजन कर पुनः सेलेक्शन करनी चाहिए कि वे जिसका माँग कर रहे उतने के लायक हैं या नही?
ऐसा करने से उनकी माँग खुद वखुद समाप्त हो जाएँगे और सरकार के लिए विकल्प भी खुलेंगे। आये दिन हड़ताल और रोज रोज का झंझट से छुटकारे के लिए कुछ तो कठोर कदम की जरूरत है, जिससे योग्यता का विकास हो और छात्र की शिक्षा में सुधार। मौलिक अधिकार की शिक्षा अगर शूरू से ही स्तरीय न हो तो ऐसे में विकास की कल्पना संभव नहीं। योग्यता परख की सिस्टम विकसित करने के विकल्प पर काम करने की आवश्यकता है, जो जात पात से उपर जाकर सिर्फ योग्यता पर विचार करे और शिक्षक सिर्फ योग्यताधारी को ही बनाया जाये, तभी स्तरीय और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा संभव है वरना एक स्वप्न?


इसकी सीख हमें महाभारत और रामायण के कथाओ में भी मिलती है। बाल्मिकी के वगैर भगवानराम मर्यादा पुरूपोत्तम नही बनते और द्रोणाचार्य के वगैर अर्जुन सरूवश्रेष्ठ धर्नुधर नही होते। ठीक उसी प्रकार योग्य शिक्षक के वगैर छात्र सफल नही हो सकते। समाज जागरूक नही हो सकता। अतः इस विषय पर गहन सोच और स्तरीय प्रतियोगिता के विकल्प पर विचार करना लाजिमी प्रतीत होता है।
                                पटना, बिहार


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