केवल शिक्षक ही नहीं, अध्यात्म का भण्डार हैं एसडी कालेज ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड टैक्नोलोजी के अधिशासी निदेशक प्रो.(डा.)एसएन चौहान


हवलेश कुमार पटेल। एसडी कालेज ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड टैक्नोलोजी के अधिशासी निदेशक प्रो.(डा.)एसएन चौहान मात्र शिक्षक ही नहीं, बल्कि अध्यात्मिक ज्ञान का भण्डार भी हैं। उनका मानना है कि कोई ग्रन्थ कभी किसी गलत बात या प्रथा का प्रतिपादन नहीं करते हैं, बल्कि सीमित बुद्धि वाले विवेचनाकारों ने अनुचित व्याख्या करके समाज को भ्रमित करने का कार्य करने से समाज में विसंगति उत्पन्न हुई हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को मूल ज्ञान का भान होना चाहिए।
शिक्षा वाहिनी से विशेष बातचीत में कहा कि आजकल लोग तुलसी दास कृत रामचरित मानस में प्रयोग किये गये ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, ये सभी ताडन के अधिकारी दोहे को मनु स्मृति का बताकर  गलत व्याख्या करके समाज में विद्वेष फैलाने का कार्य कर रहे हैं, जबकि इसका प्रयोग कुछ अलग ही अर्थों के लिए हुआ था। इसके साथ ही मनुस्मृति को सामाजिक विसमता का पोषक बताकर उसे शूद्रों के विरूद्ध बताया जाता है, जो गलत है। उन्होने बताया कि मनुस्मृति में कुछ भी सामाजिक असमानता या शूद्रों के खिलाफ नहीं है, बल्कि जिन लोगों ने मनृस्मृति कभी पढ़ी ही नहीं या जिसने पढ़ी भी वे उसकी सही व्याख्या करने में विफल रहे है, उन्होंने गलत प्रचार करके समाज की बहुत हानि की है। उन्होंने कहा कि हमें अपने मूल ज्ञान की ओर लौटना चाहिए।
डा.एसएन चौहान ने बताया कि हमारा देश सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के कारण बेहद समृद्धशाली था और इसी कारण इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था। इसी कारण अनेक आतंतायियों ने भारत पर आक्रमण किये और इसकी सांस्कृतिक व प्राकृतिक धरोहर का जमकर शोषण किया। इसका सबसे अधिक नुकसान हमें अपनी सांस्कृतिक मूल्यों को खोकर चुकानी पडी है। उन्होंने कहा कि आज हम वही इतिहास पढ़ रहे हैं, जो विदेशियों द्वारा लिखा गया। डा. चौहान का मानना है कि हमें अपने विवेक को जागृत करके अपने मूल से जुड़ना होगा, तभी हम अपने प्राचीन वैभव को प्राप्त कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि आज इतिहास के कुछ तथ्यों पर शोध करने की जरूरत है। डा.एसएन चौहान का कहना है कि इतिहास में तीन भरत का उल्लेख है एक जड़ भरत, दूसरे दशरथ नन्दन व राम चन्द्र भगवान के भाई भरत और तीसरे दुश्यन्त-शकुन्तला पुत्र भरत। अब यह शोध का विषय है कि हमारे देश का नाम भारत किस भरत के नाम पर पड़ा था। उन्होंने बताया कि हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि जम्बूद्वीपे भारत खण्डे का उल्लेख बेहद पुराऐतिहासिक ग्रन्थों मे भी हुआ है।


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