मित्रता


अमर 'अरमान', शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

अखबार में शुनक और वानर की मित्रता के किस्से पढ़ते ही दिमाग आश्चर्य से भर उठा। एकाएक मन में अनेक प्रश्नों के ज्वार उमड़ पड़े, जिन्हें शांत करना बड़ा ही दुष्कर कार्य लग रहा था, किंतु मन था कि बिना उत्तर जाने शांत होने को तैयार ही न था। दो बेज़ुबान ढोर जिन्हें हमारे तक़ब्बुरान समाज में तुच्छ और अज्ञ समझा जाता है। वहीं तुच्छ और मूर्ख प्राणी कितनी अच्छी तरह से एक दूसरे की भावनाओं और संवेदनाओं को समझते हैं? वे बेज़ुबान अपढ़़ और ज़ाहिल होकर भी एक-दूसरे से सहस बातें कर लेते हैं तथा एक-दूसरे के भावों ,विचारों और उनकी आवश्यकताओं को बहुत ही सहज भाव से परख लेते है। वहीं मानव जो खुद को अशरफ्-उल् मख्लूक़ात समझता है, उसे अपनों के प्रेम, जज़्बात और भावनाओं को समझने में नाक़ाम होते हुए देखा गया है। ऐसे में यह प्रश्न उठना लाज़िमी है कि क्या खुद को आलम और महान कहलाने वाली आवाम वास्तव में आला है भी या सिर्फ महान होने का झूठा स्वांग करती है?

          बात उन दिनों की है जब मैं बी.एड़. की पढ़ाई कर रहा था। तभी मुझे एक दिन एक लड़का रोता दिखा। मैं उसके पास गया और बड़े प्रेम से उससे उसके रोने का अस्बाब पूछा। पहले तो वह ना-नुकुर करने लगा, किंतु मेरे बहुत पूछने पर उसने मुझे जो बताया। उसे सुनकर मैं आवाक रह गया। हालाकि उस समय मेरी भी विचारधारा और मानसिकता अन्य लोगों की भांति ही संकुचित और सीमित थी और तब मैं भी प्रेम और प्यार के रहस्य से अन्ज़ान तथा भक्ति और श्रद्धा से नावाक़िफ था। उस समय तक मुझे भी प्रेम और प्यार में कोई भेद नज़र नहीं आता था। उसने मुझसे कहा-मेरा एक मित्र है, जिसे मैं बहुत ही पसंद करता हूँ। मुझे उसके साथ रहने,उससे बात करने और उसके लिए कुछ अच्छा करने में अदभुत और ज़ादुई आनंद प्राप्त होता है, किंतु एक दिन जब मैंने उससे ये सब बताया,तो उसने बड़ा ही अटपटा सा उत्तर दिया। जिसे सुनकर मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उसने कहा-देख यार अगर तू एक लड़की होता तो शायद मुझे भी ये सब अच्छा लगता और तब मुझे भी तेरी फ़िक्र होती, किंतु एक लड़के के साथ मुझे दोस्ती करके क्या मिलेगा। इसलिए मुझे माफ़ करना मैं तेरी कोई मदद नहीं कर सकता?

लड़का बोला- मैंने उसे समझाने की कोशिश की, कि मित्र मुझे तुम्हारे साथ रहने में आत्मिक सुख मिलता है। इसका ये कतई मतलब नहीं कि मैं तुम्हारे साथ मुवासलत की चाह रखता हूँ। मैंने बोलना जारी रखते हुए कहा- मित्रता एक ऐसा पुनीत शब्द और भाव है, जिसे शब्दों में व्यक्त कर पाना कतई संभव नहीं है। लड़के ने पुनः कहा- जब एक व्यक्ति देवी या देवता में लिंग भेद ना करते हुए किसी से भी प्रेम कर सकता है, तो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से निःस्वार्थ भाव से मित्रता (प्रेम) क्यों नहीं कर सकता है ? इस पर मैंने प्रतिउत्तर में कहा- हाँ बात में दम तो है?

         लड़के ने कहा-संसार में जब कभी मित्रता की बात होती है, तब-तब लोग कृष्ण-सुदामा, कृष्ण-अर्जुन,कर्ण-दुर्योधन,राम-हनुमान, राम-सुग्रीव आदि (जिन्होंने सादिक़ जैसे पुनीत रिश्ते के लिए राज-पाट, सुख-चैन यहाँ तक खुद के प्राणों तक को हँसते- हँसते फ़ना कर दिया) मित्रता के पुण्य सतम्भो के उदाहरण बड़े ही गर्व से दिए जाते हैं, किंतु जब स्वयं की बात आती है तो उनके ज़हन में हक़ीक नाम पर (लड़की के साथ मित्रता वाली) वासना और शारीरिक सम्बन्धों की बू आती है। आज के मानव की घटिया मानसिकता ने दोस्ती जैसे मुक़द्दस बंधन को सिर्फ लड़के लड़की के मध्य होने वाले जिस्मानी सम्बन्धों  तक ही सीमित कर दिया है।

                          

बघौली, (हरदोई) उत्तर प्रदेश

Post a Comment

Previous Post Next Post