प्रभाकर सिंह, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आज का समय, कोरोना का समय
अब समस्या बन चुकी है
आपसी नज़दीकियां
अच्छी लगने लगी हैं दूरियाँ
ज़रूरी हो गईं हैं सावधानियाँ
कोरोना वायरस
और चिंता का सिग्नल
मुश्किल कर देता है सारे सवालों के हल
पता नहीं
हथियारों की होड़
या किसी प्राकृतिक क्रिया का प्रतिफल
जो भी हो
मर चुकी सी लगती है इंसानी संवेदना
लोभ न करने की दार्शनिक परंपरा
लाभ पाने की इतनी है पराकाष्ठा
कि महामारी में भी हो रही
भयंकर काला बाज़ारी
और दिखती जनता की लाचारी
धर्मों ने भी मास्क लगा लिया है
ख़ुद के चेहरे पर
कोई फल नहीं देते ,
नैनोमीटर के आकार के वायरस का हल नहीं देते
ईश्वर, अल्लाह,गॉड हो गए हैं
अंधे, बहरे
वैसे भी ईश्वर तो ईश्वर है
अनगिनत गैलेक्सियों, ग्रहों,उपग्रहों का मालिक
वह क्या -क्या करे
किन -किन बुराईयों से लड़े
कोरोना तो इंसानी क्रिया की ही प्रतिक्रिया है
एक जैविक या कृत्रिम प्रक्रिया है
फिर क्या रोना -धोना
करना, हाय कोरोना,हाय करोना !
लेकिन ,धरती का ईश्वर
इलाज करता मिलेगा अस्पतालों में
सेवा करता दिख जाएगा सेवालयों में
या मिल जाएगा प्रयोग करता हुआ प्रयोगशालाओं में
उजाला ख़ुद का दीपक बनने से ही होगा
बिना घबरारहट के चलने से होगा।
रिसर्च स्कॉलर इलाहाबाद विश्वविद्यालय
Tags
poem