एक छोटा सा प्रयास बन सकता है समाज के लिए प्रेरणास्रोत







(राज शर्मा "आनी"), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

अहम भाव से परे सबका सम्मान करो 

भारत वर्ष में विभिन्न प्रकार के बुद्धिजीवी रहते हैं ।  इनमें से कई दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनते हैं तो कई दूसरों की अन्तर्भावना को समझते हुए उत्थान के कार्य भी करते हैं और उनके नई राह नई दिशा मार्ग को प्रशस्त करते हैं, परंतु ऐसे भी बहुत इंसान हैं तो क्षेत्रवाद के चलते दूसरों की अन्तर्भावना को नजरअंदाज करके उन्हें नीचा दिखाने की सोचते हैं, परंतु वह ये नहीं देखते, न सोचते कि हो सकता है उस इंसान में कोई हुनर हो, जो समाज में आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत हो । 

जाने कहां जा रहा है समाज

एक बार मैं एक सज्जन के साथ दिल्ली की यात्रा पर गया हुआ था। वहाँ पर मेरी भेंट नारायण दत्त जी से हुई कुछ समय में हम दोनों एक दूसरे के लिए अपरिचित से परिचित हो गए थे। बातों ही बातों में उन्होंने जिक्र किया कि समाज में ऐसे वर्ग के लोग भी रहते हैं, जो स्वयं तो किसी कार्य में निपुण नहीं होते हैं और दूसरों को भी खरा उतरने नहीं देते। मैंने बीच में टोकते हुए कहा कि आप कहना क्या चाहते हो? तब उन्होंने कहा कि मैं भी एक साहित्यकार हूँ, परन्तु विडम्बना यह है कि मेरा सहयोग कोई भी नहीं कर रहा है। मैं इतिहास के गर्भ में छिपे हुए अनसुलझे रहस्यों पर बेबाक शोध में लगा हूँ। मैंने कहा कि ये तो अच्छी बात है आप भारत देश की संस्कृति व ऐतिहासिक धरोहरों पर विस्तृत शोध कर रहे हैं। तब उन्होंने आगे जो कहा उससे में अवाक रह गया। नारायण दत्त ने कहा कि मैं अपने द्वारा स्वलिखित खण्डहरों व पुरातन मठ-मन्दिरों की अनकही कहानियों को समस्त समाज के सामने लाना चाहता था, परन्तु मेरे इस कार्य में कोई मेरा सहयोग नहीं कर रहा। मीडिया में और विभाग के लिए कई बार पत्र लिखे, परन्तु उनका कभी कोई जबाब नहीं आया। किसी बन्धु ने कहा कि आप जिस स्थान में आजकल अन्वेषण कर रहे हैं। आप वहां के स्थानीय अखबारों के माध्यम से अपने किए गए शोध के विषय में लिखो, क्योंकि आप जिस स्थान पर हो आपका विषयी समन्धित शोध भी उस स्थान से प्रकाशित होना चाहिए। मैंने कहा कि ये तो क्षेत्रवाद हुआ। भारत देश की छोटी सी जानकारी भी समस्त भारतवर्ष के लिए एक अहम स्थान रखती है, क्योंकि इसमें समस्त राष्ट्र का इतिहास बनता है। बस इसी बीच हमारी चर्चा बन्द हो गयी ।

देश की अखंडता को बनाए रखने के लिए छोटी सोच का त्याग व सबको साथ मे रखना आवश्यक

जरा सोचो हमने इतिहास से आज तक क्या शिक्षा ली

महाभारत कालीन इतिहास में सबसे अहम पात्र एकलव्य जिसे गुरुद्रोण ने शिक्षा न देकर शायद अपना गौरव समझा, क्योंकि एकलव्य निषादकुल में पले बढ़े हुए थे इसकारण गुरुद्रोण ने एकलव्य को अपना शिष्य नहीं बनाया, परन्तु गुरुभक्त एकलव्य ने मन-कर्म और वाणी से गुरुद्रोण को अपना गुरु मान लिया था और वन में जाकर किसी एकांत स्थान पर गुरुद्रोण की मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास करते रहे। आगे का वृतांत तो सबको मालूम है कि क्या हुआ था। कहने का भाव है कि जो हुनर और प्रतिभा एकलव्य में थी वह उस समय किसी में दृष्टिगोचर नहीं होती थी। उसी प्रतिभा के ईर्ष्या वश गुरुद्रोण ने दक्षिणा स्वरूप एकलव्य का वह अंगूंठा मांग लिया, जिससे बाण अनुसंधान किए जाते थे। यहाँ प्रश्न उत्पन्न होता है कि जब एकलव्य को शिष्य ही स्वीकार नही किया गया था तो किस अधिकार से गुरुद्रोण ने गुरु दक्षिणा ली। सब स्वार्थ के विषय है अंत में मिला क्या कुछ भी तो नहीं। जिस शिष्य को महान बनाने के लिए गुरुद्रोण प्रतिबद्ध थे युद्ध में वही शिष्य (अर्जुन ) उनके सामने खड़े थे । 

मेरा कहने का अर्थ है अगर किसी व्यक्ति विशेष में कोई हुनर है तो उसे समाज के सामने लाने का हर सम्भव प्रयास करना चाहिए न कि उसे दबाना की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि प्रत्येक व्यक्तिविशेष में कोई न कोई हुनर (प्रतिभा) होता है । अतः सबका सम्मान करना चाहिए ।

 

कुल्लू, हिमाचल प्रदेश






Post a Comment

Previous Post Next Post