(मनोरमा पटेल), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
पूर्व में ही किये अपने ऐलान के अनुसार दलित संगठनों ने देश भर में बंद का आयोजन किया। बंद के दौरान जगह-जगह आंदोलनकारियों की पुलिस-प्रशासन के साथ झड़प हुई, कहीं-कहीं पुलिस को स्थिति संभालने के लिए फायरिंग भी करनी पडी। कई सरकारी और गैर सरकारी वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। इन सबके बीच देश मे दर्जनभर लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडा। इस दौरान देश के लगभग सभी हिन्दी भाषी प्रदेश सांस थामे किसी भी अनहोनी की आशंका के चलते सहमे रहे।
अब प्रश्न ये उठता है कि ये बंद ये खूनखराबा, सरकारी सम्पत्ति का ये नुकसान आखिर किसलिए किया गया। अगर ये सब शक्ति प्रदर्शन के लिए किया तो शक्ति प्रदर्शन किसने और किसके लिए किया। अब अगर थोडी देर के लिए ये मान लिया जाये कि ये शक्ति प्रदर्शन उन दलितों ने किया जो अपने आपको निशक्त कहते हैं, तो फिर इस प्रदर्शन की शक्ति उनके पास कहां से आयी और अगर ये माना जाये कि दलित अब निःशक्त नहीं शक्तिशाली और सबकुछ करने में समर्थ हैं, सरकारी सम्पत्ति को आग के हवाले करने में समर्थ हैं, पुलिस चैकी में आग लगाने में समर्थ हैं, देश को बंद करके उसकी नब्ज थामने मंे समर्थ हैं तो उन्हें अपने संरक्षण और पोषण के लिए किसी एससी-एसटी कानून की जरूरत क्यों है? दूसरी तरफ अगर ये मान भी लिया जाये कि दलितों को एससी-एसटी एक्ट की जरूरत है, तो जितनी ताकत और पैसा भारत बंद में खर्च किया गया, उस ताकत और पैसे का हजारवां हिस्सा भी सुप्रीम कोर्ट में मामले की पैरवी में खर्च किया जाता तो आज तश्वीर कुछ और ही होती और बंद के दौरान दर्जनों को असमय काल के मुंह में समाना न पड़ता।
सोने-चांदी का व्यापार करने वाले देश की पिछड़ी जाति में आने वाले सुनारों की बात करें या देश की रीढ़ कहे जाने वाले अन्य व्यापारी वर्ग की बात करें, तो उक्त सभी ने कथित रूप से असंगत कानूनों का विरोध किया, लेकिन देश या समाज की सम्पत्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया, न ही किसी थाने में आग लगायी और न ही रेल-सड़क जाम करके लोगों को परेशान किया। क्या दलितों के पास इनसे अधिक संसाधन हैं?
इतिहास में झांककर इन कथित दलितों को सबक लेना चाहिए। दलित विचारक मानते हैं पुरागेतिहासिक काल से यहां लम्बे समय तक दलित शासकों का राज रहा, लेकिन फिर धीरे-धीरे अन्य लोग यहां सिरमौर बनते चले गये और कथित दलित शासक नेपथ्य में चले गये। अब दलितों को समझना होगा, कि ये सब क्यों और कैसे होता चला गया। इतिहास गवाह है कि व्यापारियों की किसी भी शासनकाल में वकत कम नहीं हुई। इसका कारण है कि उन्होंने अपनी शक्ति व क्षमता का प्रदर्शन करके उसे जाया नहीं किया, बल्कि इन सबसे दूर रहते हुए केवल अपने काम पर, अपने लक्ष्य और अपनी उन्नति पर ही ध्यान दिया और नतीजा हमारे सामने है। इसके साथ ही बहुत से ऐसे वर्ग हैं, जिन्होंने अपनी क्षमता और ताकत को इस तरह के शक्ति प्रदर्शन में जाया नहीं किया और नतीजा सबके सामने है। दो अप्रैल के भारत बंद के जिम्मेदार कथित दलितों को इन वर्गों को अपना आईडियल मानना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो शायद उन्हें अपनी रक्षा और पोषण के लिए किसी एससीएसटी एक्ट की जरूरत ही नहीं पडेगी।
लेखिका शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र की सम्पादक हैं