(मनोरमा पटेल), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
अभी तक शिक्षामित्रों को निचले स्तर से लेकर आला अफसरों तक व विधानसभा से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक यह कहकर अपमानित किया जाता है कि वे शिक्षक बनने की योग्यता नहीं रखते। बहुत से लोग भी अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि वेलक्वालीफाईड युवाओं की उपेक्षा करके शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाना गलत है। कानूनी दृष्टि से वास्तव में पूर्ववर्ती सरकार द्वारा बिना कुछ सोचे-समझे मनमाने ढ़ंग से लागू किया गया ये निर्णय वास्तव में शिक्षक बने शिक्षामित्रों को छल ही गया, साथ ही उन कानूनविद्वों, अफसरों और नेताओं पर भी प्रश्नचिन्ह लगा गया, जिन्होंने इतनी साधारण बात को भी ध्यान में नहीं रखा कि शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है और राज्य सरकार ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती, जो केन्द्रीय कानून को काटता हो।
खैर ये बात तो अलग है, लेकिन आज यहां बात हो रही है, नियुक्त किये गये टीईटी पास वैलक्वालीफाईड शिक्षकों की योग्यता की। उनकी योग्यता की पोल अंग्रेजी माध्यम से चुनिंदा स्कूलों में शिक्षकों की भरपाई नहीं होने से खुलती नजर आ रही है। सरकार से लेकर अफसरों तक ऐडी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी अग्रेजी माध्यम के परिषदीय स्कूलों के लिए शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं। इसे क्या समझा जाये..? क्या बड़ी-बड़ी डिग्रियां भी अंग्रेजी माध्यम के स्कूूलों में जूनियर कक्षाओं के बच्चों को पढ़ाने की योग्यता भी नहीं दे पायीं या ये डिग्रियां केवल छलावा हैं और इनको मेहनत से प्राप्त करने बजाए दुकान रूपी शिक्षण संस्थानों से खरीदा गया है। यदि अयोग्य लोग गुरूजी बन गये तो गलती किसकी है..? क्या सरकार को नियुक्ति में ऐसी व्यवस्था नहीं करनी चाहिए थी, कि योग्य अभ्यर्थी ही शिक्षक पद के लिए चुनकर आते। आरक्षण का जबरदस्त विरोध करने वाले उन लोगों की योग्यता को क्या हुआ, जो आरक्षित वर्ग के लोगांे को हर मौके पर अयोग्य बताते नहीं थकते। खैर कुछ भी कह लिया जाये, कुछ भी कर लिया जाये, स्थिति बदलने वाली नहीं। जो लोग किसी भी तरह से डिग्री हासिल करके पदस्थ हो चुके हैं, उन्हें तो झेलना ही पडेगा। चाहे हंस कर या रोकर।
लेखिका शिक्षा वाहिनी समाचारपत्र की सम्पादक हैं