रिजर्व स्वभाव के मृदुभाषी और बेहद व्यवहारकुशल आईएएस अफसर हैं प्रदीप कुमार


(हवलेश कुमार पटेल), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


पुराने टिहरी के अन्तिम और नये टिहरी के प्रथम उपजिलाधिकारी होने का गौरव तत्कालीन पीसीएस और वर्तमान में आईएएस अफसर प्रदीप कुमार को प्राप्त है। फैजाबाद के मूल निवासी 1994 बैच के पीसीएस अफसर प्रदीप कुमार 24 सितम्बर 2015 में आईएएस कैडर में प्रोन्नत हुए और इसके बाद वे मैनपुरी में जिलाधिकारी के पद सहित शासन-प्रशासन में कई महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं देने के बाद वर्तमान में विशेष सचिव एमएसएमई के पद पर तैनात हैं।
31 जुलाई 2004 को टिहरी शहर विशाल झील में समा गया था। आखिरी व्यक्ति को इसी दिन यहां से विस्थापित किया गया था। आज पुराना टिहरी शहर बस लोगों की स्मृतियों में जिंदा है और रहेगा। 31 जुलाई को हर वर्ष टिहरी स्मृति एवं विस्थापित एकता मंच कार्यक्रम आयोजित करता है। आज भी वहां के लोग उस सरकारी अफसर को याद करते हैं, जिसने सभी को उनकी मर्जी से सरकारी आदेश पर उन्हीं के घर व शहर से विस्थापित करा दिया था।



जनपद मुजफ्फरनगर से अपनी सेवा की शुरूआत करने वाल तत्कालीन पीसीएस अफसर प्रदीप कुमार को ट्रैनिंग के दौरान राजकुमार श्रीवास्तव जैसे कुशल अधिकारी का सानिध्य प्राप्त हो गया था, जिनसे युवा पीसीएस अफसर प्रदीप कुमार ने काफी कुछ सीखा। कुछ समय बाद ही प्रदीप कुमार का ट्रांसफर बतौर एसडीएम टिहरी (वर्तमान में उत्तराखण्ड़ व उस समय उत्तर प्रदेश) हो गया। उस समय टिहरी बांध के कारण पुराने टिहरी शहर के विस्थापन का कार्य तेजी पर था। ऐसे नाजुक समय में चार्ज लेते हुए युवा पीसीएस अफसर प्रदीप कुमार टिहरी विस्थापन के सबसे बड़े अवरोधक चिपको आंदोलन के प्रणेता सुन्दर लाल बहुगुणा से उनकी कुटिया पर जाकर मिले और पूरी आत्मीयता से व्यवहारिकता का प्रदर्शन करते हुए अंधेरे के आगोश में लिपटी चिपको आंदोलन की कुटिया के आसपास आनन-फानन में लाईट लगवा दी और साथ ही यह सरकार व शासन-प्रशासन की सख्ती का यह अहसास भी करा दिया कि टिहरी विस्थापन का कार्य किसी भी कीमत पर रोका नहीं जा सकता है।



स्वभाव से रिजर्व, लेकिन मृदुभाषी और व्यवहारिक युवा 1994 बैच के पीसीएस अफसर ने नौकरी शुरूआत में व्यवहारिकता का ऐसा दांव चला कि घाघ नेता के रूप में प्रख्यात् हो चुके सुन्दरलाल बहुगुणा खुद को उससे बचा नहीं सके। शायद उन्हें भी युवा एसडीएम प्रदीप कुमार की बातों में सच्चाई नजर आ गयी थी कि अब टिहरी बांध परियोजना के काम को रोकना सम्भव नहीं है। इसके साथ ऊर्जावान युवा अधिकारी प्रदीप कुमार सुन्दर लाल बहुगुणा को अपनी कार्यशैली और व्यवहार से यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहे, कि ये अधिकारी नीयत से अच्छा और सुलझा हुआ है, इससे किसी भी अहित की आशंका नहीं है। बस फिर क्या था टिहरी बांध परियोजना के धुरविरोधी सुन्दर लाल बहुगुणा उनके सबसे बडे सहायक बन गये। फिर तो एक के बाद एक कई ऐसे काम इस युवा अफसर ने कर दिखाये कि आज भी लोग उन्हें भूल नहीं पाये हैं। उन्होंने तत्कालीन चुनाव और विस्थापन की गहमागहमी के बीच तत्कालीन जिलाधिकारी से अपने बलबूते तीन दिवसीय टिहरी महोत्सव की अनुमति ली, डीएम ने भी किसी भी होनी-अनहोनी की जिम्मेदारी प्रदीप कुमार के सिर डालते हुए अनमने मन से महोत्सव की अनुमति दे दी। इसके बाद उक्त महोत्सव ने सफलता का ऐसा इतिहास रचा कि उक्त तीन दिवसीय महोत्सव पहले सप्ताह भर फिर ग्यारह दिनों तक सफलता की कहानी कहता रहा।



उक्त के सम्बन्ध में टिहरी के तत्कालीन उपजिलाधिकारी एवं बतौर पीसीएस अफसर कई महत्चपूर्ण पदों पर अपनी कृतित्व व व्यक्तित्व का लोहा मनवा चुके प्रदीप कुमार (जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश शासन ओद्यौगिक अवस्थापना विभाग के विशेष सचिव का जिम्मा सम्भाल रहे हैं) ने शिक्षा वाहिनी को एक भेटवार्ता में बताया कि पुराना टिहरी शहर तीन नदियां भागीरथी, भिलगना ओर घृत गंगा, जो विलुप्त हो गई थी से घिरा हुआ था, इसलिए इसको त्रिहरी नाम से पुकारा जाता था। बाद में यह शहर टिहरी नाम से जाना जाने लगा। इस शहर को राजा सुर्दशन शाह ने दिसम्बर 1815 में बसाया था, लेकिन जब इस शहर को बसाया गया उस समय ज्योतिष ने कहा कि इस शहर का उम्र कम है। पुरानी टिहरी 1815 से पहले तक एक छोटी सी धुनारों की बस्ती थी, जिसमें 8-10 परिवार रहते थे। इनका व्यवसाय तीर्थ यात्रियों व अन्य लोगों को नदी के आर-पार ले जाना था। इससे पहले इस स्थान का उल्लेख स्कन्द पुराण के केदार खण्ड में भी है, जिसमें इसे गणेशप्रयाग व धनुषतीर्थ कहा गया है। सत्तेश्वर शिवलिंग सहित कुछ और सिद्ध तीर्थों का भी केदार खण्ड में उल्लेख है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1965 में तत्कालीन केन्द्रीय सिंचाई मंत्री केएल राव ने टिहरी बांध बनाने की घोषणा की और 29 जुलाई 2005 को टिहरी शहर में पानी घुसा, जिससे सौ से अधिक परिवारों को शहर छोड़ना पड़ा था। अक्टूबर 2005 से टिहरी डैम की टनल दो बन्द की गई और पुरानी टिहरी शहर में जल भराव शुरू हो गया। टिहरी डैम की झील का जल स्तर कम होने पर पुरानी टिहरी में डूबे सम्पति दिखने लगती है। जिसे के लिये नई टिहरी, देहरादून, ऋषिकेश में बसे लोग आते हैं और अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हैं।



जानकार बताते हैं कि टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। टिहरी बाँध भारत का सबसे ऊँचा तथा विशालकाय बाँध है। यह भागीरथी नदी पर 260.5 मीटर की उँचाई पर बना है। टिहरी बांध दुनिया का आठवाँ सबसे बड़ा बाँध है, जिसका उपयोग सिंचाई तथा बिजली पैदा करने हेतु किया जाता है। टिहरी बांध परियोजना हेतु प्राथमिक जांच का काम 1961 में पूर्ण हो गया। इसके बाद इसके रूपरेखा तय करने का कार्य 1972 में हुआ। इसके लिए 600 मेगा वाट का बिजली संयंत्र लगाया गया। इसके निर्माण का कार्य 1978 में शुरू हो गया, लेकिन आर्थिक, पर्यावरणीय आदि प्रभाव के कारण इसमें देरी हुई। इसके निर्माण का कार्य 2006 में पूरा हो गया। इस बाँध से 2400 मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराना था। इस बांध से पूरी तरह से डूबे टिहरी शहर और २३ गांवों के लोगों को मुफ्त बिजली मुहैया कराना भी था।



टिहरी बांध का विरोध करने वालों का तर्क है कि यह परियोजना हिमालय के केंद्रीय क्षेत्र में स्थित है। यहाँ आस-पास 6.8 से 8.5 तीव्रता के भूकंप आने का अनुमान लगाया जाता रहा है। पर्यावरणविद मानते है की बाँध के टूटने के कारण ऋषिकेश, हरिद्वार, बिजनौर, मेरठ और बुलंदशहर इसमें जलमग्न हो जाएँगे। संसद की एक समिति ने भी कहा था कि उत्तराखंड में टिहरी परियोजना द्वारा क्षेत्र में पौधारोपण कार्य नहीं करने के कारण भूस्खलन के रूप में बड़ा पर्यावरणीय खतरा उत्पन्न हो गया है। लोकसभा में पेश गृह मंत्रालय से संबंधित आपदा प्रबंधन पर याचिका समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि उत्तराखंड में 1400 मेगावाट का विद्युत उत्पादन कर रही टिहरी परियोजना ने क्षेत्र में पौधारोपण कार्य पर ध्यान नहीं दिया है, जिससे पर्यावरण को खतरा उत्पन्न हुआ है। समिति ने गौर किया कि पर्वतों पर बार-बार होने वाले भूस्खलन को कम करने में वृक्षारोपण दीर्घकालीन समाधान साबित हो सकता है।



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