(कुंवर आर.पी.सिंह), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
एक बार एक व्यक्ति को बेमतलब इधर उधर घूमते देख, एक रईश व्यक्ति ने उसे अपने नये लगे बाग की रखवाली देखभाल करने का काम सौंप दिया। वह व्यक्ति भी अनेक वर्षों तक लगन मेहनत से अपना काम करता रहा। मालिक भी उससे बहुत प्रसन्न था। एक बार मालिक के यहाँ मेहमान आये, तो उसने माली चौकीदार से बाग से अच्छे मीठे आम लाने को कहा।
माली ने तत्काल सुन्दर सुन्दर आम तोड़े और टोकरियों में भरकर मालिक के घर लाया। मालिक ने अपने बाग और आमों की बहुत तारीफ करते हुये मेहमानों से खाने का आग्रह किया। जब मेहमानों ने आम खाना शुरु किया, तो वह खट्टे निकले। यह बात मालिक को नागवार गुजरी, वह माली को डांटते हुए बोला, क्या तुम्हें खट्टे और मीठे आमों की पहचान नहीं है ? चौकीदार विनम्रता से बोला, श्रीमान मुझे इस बारे कुछ मालूम नहीं है। मालिक ने जब इसका कारण पूछा, तो वह बोला-क्योंकि आजतक मैंने एक भी आम नहीं चखा। मालिक ने कहा कि तुम सारा दिन बाग में रहते हो, तुम जब चाहते, आम खा सकते थे। तब उसने कहा-आपने मुझे आजतक कभी आम खाने के लिए नहीं कहा, फिर मैं अपनी मर्जी से कैसे खा लेता? क्योंकि यह चोरी कहलाती।
आपने मुझे बाग मे चौकीदारी के लिये रखा था, ताकि मैं कोई चोरी ना होनें दूँ, फिर मैं ही चोरी कैसे करता? माली चौकीदार की ईमानदारी की बात सुनकर मालिक और मेहमान सभी बेहद प्रभावित हुए।
यही माली चौकीदार आगे चलकर महात्मा संत इब्राहिम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। संत इब्राहिम का संदेश आज भी महत्वपूर्ण है कि ईमानदारी जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ
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