प्रदूषण का कहर


(आशुतोष), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

बढते विलासिता उपकरण भीषण

प्राण वायु में फैल रहा प्रदूषण

जीवन दायिनी जल भी कहाँ बचा

इनके अंदर भी जा पहुँचा प्रदूषण।

 

आश्रित होते नये उपकरणों पर

रोज नये नये होते प्रयोग

अन्न से लेकर वस्त्र तक 

रासायन होते है उपयोग।

 

किचेन सज गयी बेड सजे 

सज गया हर घर का कोना

अत्याधुनिक मशीनो से

चलते फिरते सोते जागते

मशीन बन गये हैं लोग

किसानो का भला क्या है दोष।

 

इतनी बडी आबादी का जहाँ

रोज मशीनो का होता उत्पादन

आवो हवा कैसे रह पाएगी

निर्मल स्वच्छ और पावन।

 

बदलते युग में निर्मित समान

कभी नही बहने देगा वायु स्वच्छ 

दिन प्रतिदिन जहरीली हो रही

वायु जल वाणी और मानव।

 

                              आशुतोष

                           पटना बिहार

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