प्रदेश के आश्रम पद्धति विद्यालयों में गरीबों के प्रतिभाशाली बच्चों को सरकार दे रही है सुविधा


शि.वा.ब्यूरो, मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी प्रदेश में आश्रम पद्धति के राजकीय विद्यालय खोलकर ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के निर्धन एवं प्रतिभावान बच्चों को कक्षा 1 से 12 तक की शिक्षा दे रही है। निर्धन एवं प्रतिभावान छात्रों को उत्कृष्ट आवासीय एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा निःशुल्क प्रदान करने के उद्देश्य से प्रदेश में 94 राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। इन विद्यालयों में प्रवेश प्राप्त छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ निःशुल्क छात्रावास, पाठ्य पुस्तकें, यूनिफार्म एवं खेलकूद आदि समस्त प्रकार की व्यवस्थाएं प्रदेश सरकार करती है।




आश्रम पद्धति के इन विद्यालयों में 60 प्रतिशत अनुसूचित जाति/जनजाति के बच्चों, 25 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग के तथा 15 प्रतिशत सामान्य वर्ग के बच्चों को प्रवेश दिये जाने की व्यवस्था है। प्रदेश में संचालित 94 राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों में से 45 सीबीएसई बोर्ड से तथा 49 विद्यालय माध्यमिक शिक्षा परिषद उ0प्र0 से सम्बद्ध है, जिन्हें सीबीएसई से सम्बद्ध कराने की प्रक्रिया चल रही है। शिक्षा की गुणवत्ता को दृष्टिगत रखते हुए इन विद्यालयों में स्मार्ट क्लास की व्यवस्था की गई है। इस पद्धति के विद्यालय बालक और बालिका के लिए पृथक-पृथक हैं।




प्रदेश में गरीबों के बच्चों को दी जा रही आश्रम पद्धति की शिक्षा के विद्यालयों में लगभग 33 हजार छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। विद्यार्थियों को स्वास्थ्य एवं रहन-सहन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। उच्च कोटि की संस्थाओं को सूचीबद्ध करते हुए खान-पान का पूरे प्रदेश में एक मेन्यू रखा गया है। परिसर में उन्हें शुद्ध पौष्टिक व ताजा भोजन दिया जाता है। अधिक से अधिक बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के उद्देश्य से गोरखपुर एवं औरैया में एक-एक अतिरिक्त राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालय बनाये जा रहे हैं तथा 16 असेवित जनपदों में भी नवीन विद्यालयों का निर्माण किया जा रहा है। प्रदेश सरकार समस्त व्यवस्थाएं करते हुए इन विद्यालयों के छात्र/छात्राओं को अच्छी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रही है, ताकि गरीबों के होनहार बच्चे देश के कर्णधार बन सकें।



ज्ञात हो कि भारत वर्ष में आश्रम पद्धति शिक्षा प्राचीन काल से रही है। प्राचीन काल में ऋषियों, मुनियों के आश्रमों में जाकर वहीं निवास कर लोगों के बच्चे विभिन्न प्रकार की शिक्षा प्राप्त करते हुए अपना शारीरिक एवं मानसिक विकास करते थे। भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति अनौपचारिक तथा औपचारिक थी। शिक्षा केन्द्रों, आश्रमों और गुरूकुलों में औपचारिक शिक्षा दी जाती थी। आध्यात्मिकता, मुक्ति एवं आत्मबोध के साधन, योग, धर्म अर्थ, काम, मोक्ष के ज्ञान आदि सहित युद्ध कौशल आदि के विषय में शिक्षार्थियों को पारंगत किया जाता था। पूरे ब्रह्मचर्य आश्रम में शिक्षार्थी गुरूओं, ऋषियों, मुनियों के आश्रमों में स्थापित शिक्षा केन्द्रों में आकर सामूहिक रूप से अधिवासित होकर शिक्षा ग्रहण करते थे।


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