फिर क्यूं जीते हैं इतना,अब डर-डर के लोग


(सतीश शर्मा), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


हर में रहते हैं बड़े संवर के लोग।
घर उजाड़ देते हैं पराये घर के लोग।


मरासिम रखो अपने घर से ता-उम्र।
दर दर भटकते हैं हर शहर के लोग।


राह बनाती हैं नजरें अंधेरे को चीरकर।
घर लौटते हैं जब थोड़ा ठहर के लोग।


इब्तिला है,कर लेते हैं यकीं हम उन पर।
मुकरते हैं अक्सर जो वादा कर के लोग।


किसी का साथ तो मिले उम्र भर यहां।
कहां चले गए है सब अब इधर के लोग?


जब है उम्मीद और हौंसले आसमां तलक।
फिर क्यूं जीते हैं इतना,अब डर-डर के लोग?


हिमाचल प्रदेश


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