हिंदू से बौद्ध बने अपना दल संस्थापक डॉ. सोनेलाल पटेल पर BJP ने क्यों कराया था लाठीचार्ज (परिनिर्वाण दिवस पर विशेष)


(प्रभाकर सिंह), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


कुर्मी-किसान-कमेरों- पिछड़ों को शोषण के विरुद्ध मंच उपलब्ध कराने और पिछड़ों-किसानों में राजनीतिक अलख जगाने के लिए डॉ. सोनेलाल पटेल ने जिस अपना दल की स्थापना की थी, आज वो दो धड़ों में बंट गया है। डॉ. सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल के साथ उनकी एक बेटी पल्लवी पटेल हैं, जो सत्ता से दूर रहकर अपने पिता के संघर्षों को आगे बढ़ा रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ अनुप्रिया पटेल और उनके पति आशीष पटेल हैं, जो सत्ता के साथ कदमताल करते हुए राजनीतिक सुख भोग रहे हैं। बहरहाल गलती किसकी है ये तो पार्टी कार्यकर्ता ही जानें लेकिन इतना जरूर है कि दोनों की बीच की खींचतान से डॉ. सोनेलाल पटेल के सपने जरूर निर्वाचन सदन की ठोकर खाने को मजबूर हैं।


हालांकि दावे तो दोनोंं तरफ से डॉ. सोनेलाल पटेल के सपनो को आगे ले जाने के किए जाते हैं लेकिन ये लंबे विमर्श का विषय  है कि दोनों में किसका रास्ता ठीक है और किसकी नियत। इस बात को पाठकों के विवेक और समझदारी पर छोड़ना ही बेहतर होगा। आज उन्हीं अपना दल के संस्थापक डॉ. सोनेलाल पटेल की परिनिर्वाण दिवस है तो उनके कार्यों और संघर्ष को नमन करते हुए #नेशनल जनमत आप तक कुछ जानकारी पहुंचाना चाहता है।


बोधिसत्व डा० सोने लाल पटेल का जन्म २ जुलाई 1950 को  फर्रुखाबाद जिले के ग्राम बबूलहाई तहसील छिबरामऊ में हुआ था। पिता गोविन्द प्रसाद पटेल व मां रानी देवी पटेल की संतानों  में आठ भाइयों में डॉ. सोनेलाल पटेल सबसे छोटे थे। शिक्षा पूरी करने के बाद आपने सेना में सेंकेंड लेफ्टीनेंट के पद पर नौकरी ज्वाइन की, लेकिन उनका मन नौकरी में नहीं लगा। वे समाज की प्रगति के लिए चिंतित रहते थे इस कारण सेना की नौकरी छोड़कर खुद का बिजनेस प्रारम्भ किया।


डा0 सोनेलाल पटेल 1987 से लेकर 1996 तक अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के प्रदेश अध्यक्ष रहे।  इसके बाद 1991से 1998 तक अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के प्रदेश अध्यक्ष व महासचिव दोनो पदों पर थे। 1998 से लेकर 2000 तक अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष की हैसियत से समाज की सेवा की।


1988 में आप मान्यवर कांशीराम के संपर्क में आए और राजनीति में प्रवेश किया। बहुजन समाज पाटी ने डा० पटेल को उत्तर प्रदेश का प्रदेश महासचिव बनाया। आपकी राजनैतिक विचारधारा पिछड़ों दलितों व कुर्मी-किसान जातियों के विकास पर केंद्रित थी। सामाजिक रूप से डा० साहब प्रदेश में सत्ता मूलक समाज की स्थापना करना चाहते थे। वे समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की बुराईयों एव कर्मकांडी व्यवस्थाओ को समाप्त करने पर विशेष बल देते थे। बसपा को आगे बढ़ाने में  डा0 सोनेलाल पटेल के योगदान को भुलाया नही जा सकता। जिस समय वो बसपा के प्रदेश महासचिव थे उन दिनो डा0 सोनेलाल पटेल कुर्मी क्षत्रिय महासभा उ0प्र0 के अध्यक्ष भी थे, विधायक रामदेव पटेल कुर्मी क्षत्रिय महासभा उ0प्र0 के महासचिव और इं0 बलिहारी पटेल संरक्षक थे तीनो लोग बसपा और कांशीराम से जुड़े हुए थे।


कुर्मी महासभा के पदाधिकारी होने के नाते संगठन पर अधिकारियों कर्मचारियों का भारी दबाव था। इसके बाद महासभा के संरक्षक इं0 बलिहारी पटेल ने आनन फानन में महासभा की बैठक सचान गेस्ट हाउस कानपुर में बुलाई। जिसमें कुर्मी समाज में राजनैतिक चेतना जागृत करने हेतु समूचे प्रदेश में रथयात्रा निकाल कर रैली करने की योजना बनी। 30 अक्टूबर 1994 को कुर्मी स्वाभिमान रथ यात्रा के माध्यम से प्रदेश के 38 जिलों में भ्रमण कर रैली करने का निर्णय हुआ। 19 नवम्बर 1994 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में कुर्मी समाज की उमड़ी भीड़ ने देश के राजनैतिक दलों को अपनी ताकत का एहसास करा दिया। इस रैली के मुख्य अतिथि डा0 सोनेलाल पटेल ही थे। रैली के माध्यम से संदेश देने की कोशिश की गई कि प्रदेश में कुर्मी समाज किसी से पीछे नही है स्वयं आगे चलने में सक्षम है।


लखनऊ रैली की सफलता के बाद लगभग 9 महीने तक घूम घूमकर लोगों में राजनीति के प्रति चेतना पैदा की गई। आखिरकार तय हुआ कि अब फिर से कुर्मी स्वाभिमान राजनैतिक चेतना रथ यात्रा के माध्यम से प्रदेश के कुर्मियों में राजनैतिक चेतना जगाई जाएगी। 47 दिन का कार्यक्रम तय किया गया जो 17 सितम्बर 1995 को कानपुर से शुरू हुआ। इसके बाद धुंआधार रथ यात्रा करके अधिकांश जिलों में जनसभा के माध्यम से कुर्मी समाज में राजनैतिक सोच पैदा की गई। जिसका समापन 31 अक्टूबर 1995 को पटेल जयन्ती के दिन खीरी जनपद से किया गया और रथ यात्रा को सीतापुर मे रोक दिया गया।


4 नवम्बर 1995 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में कुर्मी स्वाभिमान राजनैतिक चेतना रैली प्रस्तावित थी लेकिन कुर्मियों में बढ़ती राजनैतिक चेतनी की आहट से सरकार ने रैली की अनुमति ही नहीं दी। बाद में बारादरी के मैदान में रैली की गयी। इस रैली को प्रदेश के कुर्मी समाज की सबसे बड़ी राजनैतिक रैली कहा जाता है। जिसमें लाखों लोगों की उपस्थिति थी। इस रैली को बीबीसी लंदन तक में स्थान मिला था। इसी कुर्मी स्वाभिमान रैली में 'अपना दल' नामक राजनैतिक पार्टी के गठन की घोषणा की गई। रैली के मुख्य अतिथि डॉ. सोनेलाल पटेल थे।अपना दल की घोषणा इं0 बलिहारी पटेल ने की जो मंच का संचालन कर रहे थे। दल की घोषणा होते ही कुर्मी समाज जिन्दाबाद के गगन भेदी नारे लगे और उपस्थित लाखों कार्यकर्ताओं ने खुशी का इजहार किया।


11  नवम्बर 1995 को बेगम हजरत महल पार्क में 'अपना दल ' का खुला अधिवेशन बुलाया गया। जिसमें डा0 सोनेलाल पटेल राष्ट्रीय अध्यक्ष, रामदेव पटेल उप्र के संयोजक और इं0 बलिहारी पटेल पार्टी के संरक्षक और हाई पावर कमेटी के चेयरमैन बनाये गये।


उप्र के अलावा डा0 पटेल के नेतृत्व में बिहार, म0प्र0, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, दिल्ली, महाराष्ट्र, तक अपना दल के कार्यक्रम आयोजित हुए। डा0 पटेल राजनैतिक क्षितिज पर आगे बढ़ते चलते गये। इस पूरे समय चक्र में भले ही कागजों पर सत्ता की सफलता ना दिखाई देती हो लेकिन इस समय में डॉ. पटेल और इंजीनियर बलिहारी पटेल ने कुर्मी-किसानों को घरों से बाहर निकलकर राजनैतिक सत्ता हथियाने का सपना जरूर दिखा दिया। आज उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल जिस धरातल पर  खड़े होकर बीजपी से हाथ मिला रही हैं वो धरातल डॉ. सोनेलाल के संघर्षोंं और सिद्धांतों की मजबूत इमारत से ही खड़ा हुआ है।


विश्व हिन्दू परिषद की तर्ज पर डॉ. सोनेलाल पटेल ने विश्व बौद्ध परिषद की स्थापना की। जिसका प्रथम  दो दिवसीय अधिवेशन 14-15 फरवरी 1999 में हुआ। इसी अधिवेशन के दौरान डॉ सोनेलाल पटेल ने लाखों किसान कमेरों के साथ हिन्दू धर्म को फैजाबाद के अयोध्या में सरयूतट पर श्रीलंका के राजदूत के समक्ष त्याग दिया और भंते प्रज्ञानन्द से बौद्धधर्म की दीक्षा लेकर बोधिसत्व डा0 सोनेलाल पटेल कहलाए। उसी दिन से डां0 सोनेलाल पटेल कट्टर जातिवादी हिन्दू संगठनों की आँखों की किरकिरी बन गये ।


1999 में डॉ. पटेल और उनके समर्थक पीडी टंडन पार्क इलाहाबाद में आयोजित नामाांकन रैली में इकट्ठे हुए। समर्थकों की भारी भीड़ को देखकर तत्कालीन बीजेपी सरकार के ताकतवर सांसद मुरली मनोहर जोशी के इशारे पर कुर्मी समाज के पुरोधा डॉ. सोनेलाल पटेल एवं वहां उपस्थित जन मानस पर लाठी चार्ज करवाया दिया गया। एक राष्ट्रीय कद के नेता को इस लाठीचार्ज में इतना मारा गया कि उनके शरीर में जगह-जगह फ्रेक्टर हो गए। इतना ही नहीं इसके बाद डॉ. सोनेलाल पटेल को अन्य समर्थकों समेत घायल अवस्था में ही एक महीने के लिए जेल में डाल दिया गया। उस समय उनके साथ जेल गए मान सिंह पटेल बताते हैं कि बीजेपी सरकार की साजिश उस हमले में डाक्टर साहब को जान से मरवाने की थी लेकिन किसी तरह समर्थकों ने उनके ऊपर लेट कर उनकी जान बचाई।


डॉ. सोनेलाल पटेल के अपना दल के सिर्फ कुर्मी पदाधिकारी के लिए ये आवश्यक था कि वो अपने नाम के आगे पटेल लगाए भले ही उसका टाइटल कटियार, सचान, गंगवार, चौधरी, वर्मा, निरंजन, उमराव, उत्तम, कनौजिया हो लेकिन डॉ. साहब का साफ कहना था कि समाज की जागरूकता के लिए पूरे प्रदेश के कुर्मियों को पटेल टाइटल लगाना चाहिए।


कुर्मी समाज व पिछड़ों के पुरोधा बोधिसत्व डॉ. सोनेलाल पटेल इस घटना से विचलित नही हुए और उन्होंने अपना सामाजिक व राजनैतिक आांदोलन जारी। लेकिन प्रकृति को कुछ और ही मंजूर था 17 अक्टूबर 2009 को कानपुर में दिपावली के दिन डॉ. सोनेलाल पटेल का निधन एक कार दुर्घटना में हो गया। डॉ. साहब हमारे बीच नहीं है लेकिन पिछड़ों, दलितों के उत्थान के लिए संघर्ष का रास्ता दिखा गए है।
रिसर्च स्कॉलर इलाहाबाद विश्वविद्यालय।


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