विविधता में एकता भारत की ताकत है: कृष्ण गोपाल

मदन सुमित्रा सिंघल, शिलचर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने बिपिन पॉल सभागार में असम विश्वविद्यालय के विधि विभाग द्वारा आयोजित समान नागरिक संहिता: समान न्याय का एक साधन विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए एकता, समानता और सामाजिक सुधार के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि एकता भारत की सबसे बड़ी ताकत है और भाषाओं, धर्मों और संस्कृतियों में इसकी विविधता का सम्मान और उत्सव मनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पश्चिम अक्सर आश्चर्य करता है कि इतना विविध देश कैसे एकजुट रह सकता है, यही हमारी विशिष्टता और हमारी ताकत है।

कृष्ण गोपाल ने कहा कि एकरूपता नागरिक अधिकारों से संबंधित है, धर्म से नहीं। उन्होंने कहा कि नागरिकों के रूप में हमारे अधिकार समान होने चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म व्यक्तिगत है, लेकिन यूसीसी नागरिक अधिकारों से संबंधित है। उन्होंने कहा कि  भारत का संविधान कहता है कि कानून के सामने हर व्यक्ति समान है। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत कानूनों को कायम रखते हुए धर्मनिरपेक्षता की बात करना विरोधाभासी है। उन्होंने इस तरह के रुख को पाखंड बताया और नागरिक अधिकारों में एकरूपता पर ज़ोर दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि एकरूपता का अभाव अशांति का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि सरकारें कानून तो बना सकती हैं, लेकिन वास्तविक बदलाव के लिए सामाजिक विचार प्रक्रियाओं में बदलाव ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि हमें धार्मिक विविधता का सम्मान करना चाहिए, लेकिन सुधारों को भी अपनाना चाहिए।

बाल विवाह के जारी रहने पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हालाँकि इसे प्रतिबंधित करने के लिए कानून मौजूद हैं, फिर भी यह प्रथा देश के कुछ हिस्सों में अभी भी प्रचलित है। उन्होंने इसे एक सामाजिक कुप्रथा बताया।उन्होंने कहा कि हिंदू समाज बाल विवाह और सती जैसी प्रथाओं को समाप्त करने के लिए विकसित हुआ है, इसके लिए सभी पूर्व सुधारकों का धन्यवाद। गोपाल ने युवा पीढ़ी से सामाजिक बुराइयों से लड़ने में पूर्व सुधारकों के उदाहरण का अनुसरण करने का आग्रह किया। 

उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के विधि विभाग की प्रो. गंगोत्री चक्रवर्ती ने समान नागरिक संहिता का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए एक भाषण दिया। असम विश्वविद्यालय के विधि विभागाध्यक्ष डॉ. पार्थ प्रतिम पॉल और सहायक प्रोफेसर एवं संगोष्ठी समन्वयक डॉ. पोंखी बोरा ने भी सभा को संबोधित किया। असम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजीव मोहन पंत ने न्याय सुनिश्चित करने में एकरूपता के महत्व पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी में शिक्षाविद, विधि विशेषज्ञ और छात्र शामिल होंगे, अगले दो दिनों तक जारी रहेगी और इसमें भारत में समान नागरिक संहिता के दायरे, चुनौतियों और निहितार्थों पर विचार-विमर्श किया जाएगा।

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