मदन सुमित्रा सिंघल, शिलचर। असम विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग का प्रवेश प्रारंभ हुआ और इस अवसर पर यूजीसी के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रवेश एवं लिंग संवेदीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की मुख्य वक्ता दर्शनशास्त्र विभाग की प्रोफेसर डॉ. मुनमुन चक्रवर्ती थीं। संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शांति पोखरेल, अतिथि प्रोफेसर डॉ. कल्लोल रॉय, डॉ. विश्वजीत रुद्र पाल उपस्थित थे। विभाग के प्रथम और तृतीय वर्ष के स्नातकोत्तर छात्र और शोधार्थी भी उपस्थित थे। विभाग के छात्रों ने उत्तर देकर डॉ. मुनमुन चक्रवर्ती का स्वागत किया। प्रोफेसर शांति पोखरेल ने स्वागत भाषण दिया।
लैंगिक संवेदनशीलता और लैंगिक समानता के बारे में डॉ. मुनमुन चक्रवर्ती ने कहा कि हमारे परिवार में हम देखते हैं कि लड़कियों और महिलाओं को केवल घरेलू कामों तक ही सीमित रखने का प्रयास किया जाता है, लेकिन अब महिलाएं सभी क्षेत्रों में समान गति से आगे बढ़ रही हैं। महिलाएं सभी क्षेत्रों में कार्यरत हैं, शिक्षा में, काम में, स्वास्थ्य में और इन सभी क्षेत्रों में, किसी भी प्रकार का लैंगिक भेदभाव वांछनीय नहीं है। सिर्फ़ लड़कियों के मामले में ही नहीं, बल्कि लड़कों के मामले में भी। उन्होंने तीसरे लिंग के लोगों के बारे में भी बात की। शिक्षा और कार्यस्थल पर लड़कियों के साथ किसी भी तरह के लैंगिक भेदभाव और यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट करने के लिए एक आईसीसी (आंतरिक शिकायत समिति) है।
डॉ. मुनमुन चक्रवर्ती ने असम विश्वविद्यालय की आईसीसी समिति और उसके सदस्यों के बारे में बताया। महिलाओं के खिलाफ किसी भी तरह के उत्पीड़न की रिपोर्ट इस समिति को दी जा सकती है। आज के कार्यक्रम का समापन डॉ. मुनमुन चक्रवर्ती के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।