डॉ. शैलेश शुक्ला, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।आज के समय में जब तकनीक हर क्षेत्र को बदल रही है, पत्रकारिता भी इससे अछूती नहीं रही। खासकर हिंदी पत्रकारिता में अब ऐसे एआई एंकर (AI Anchors) और चैटबॉट्स (Chatbots) का प्रयोग बढ़ गया है, जो खबरें पढ़ते हैं, सवालों के जवाब देते हैं और कभी-कभी लाइव अपडेट भी देते हैं। उदाहरण के लिए "सृष्टि" नाम की एक एआई एंकर और "सारथी" नाम का एक चैटबॉट हाल ही में चर्चा में रहे हैं। इनका उद्देश्य है समाचारों को तेज़ी से, कम लागत में और तकनीकी रूप से उन्नत बनाना। लेकिन इस बदलाव के कई पहलू हैं – अच्छा, बुरा और सोचने लायक।
आकर्षक शुरुआत, लेकिन अधूरी संवाद क्षमता : जब कोई एआई एंकर पहली बार स्क्रीन पर आता है, तो उसका चेहरा, उसकी आवाज़, उसकी भाषा — सब कुछ देखकर एक आकर्षण जरूर पैदा होता है। दर्शक हैरान होते हैं कि एक कंप्यूटर इतनी अच्छी तरह से समाचार कैसे पढ़ सकता है! यह आकर्षण कुछ समय तक बना रहता है। पर धीरे-धीरे दर्शक महसूस करने लगते हैं कि इन एआई एंकरों में वह मानवीय स्पर्श नहीं है जो किसी असली पत्रकार की आँखों, आवाज़ और हाव-भाव में होता है। यह अंतर खासकर तब महसूस होता है जब कोई संवेदनशील या भावनात्मक खबर पेश की जाती है — जैसे किसी आपदा की खबर, किसी शहीद की खबर, या कोई सामाजिक मुद्दा।
भाषा तो साफ़, पर आत्मा नहीं : एआई एंकरों की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि वे बहुत साफ-सुथरी, व्याकरणिक रूप से सही और सटीक भाषा में बात करते हैं। लेकिन यही उनकी कमजोरी भी है — क्योंकि उनकी भाषा में वह दिल से निकली हुई आत्मीयता नहीं होती, जो एक असली पत्रकार के बोलने में होती है। जैसे जब कोई मानव पत्रकार कहता है – "आज मौसम बहुत सुहावना है, चलिए चलते हैं मैदान की ओर" – तो वह एक संवाद जैसा लगता है। लेकिन जब एआई एंकर कहता है – "दिल्ली में आज का तापमान 34 डिग्री सेल्सियस है, आंशिक बादल छाए रहेंगे", तो वह एक रोबोट की तरह सुनाई देता है। इसमें न तो भाव होता है, न आत्मीयता और न ही स्थानीयता।
चमत्कारिक रफ्तार और कम खर्च — लेकिन क्या कीमत पर? : व्यावसायिक दृष्टिकोण से देखें तो एआई आधारित पत्रकारिता में कई फायदे हैं। जैसे खबरें बहुत तेज़ी से बन जाती हैं। मौसम, शेयर बाज़ार, खेल, या ट्रैफिक की अपडेट तुरंत दे दी जाती हैं। इससे मीडिया संस्थानों को कम खर्च में ज्यादा खबरें बनाने का मौका मिलता है। वे 24x7 खबरें चला सकते हैं, बिना किसी छुट्टी या वेतन के बोझ के। लेकिन सवाल यह है – क्या सिर्फ खबरें पढ़ना ही पत्रकारिता है? क्या सिर्फ जानकारी देना ही उद्देश्य होना चाहिए? या फिर पत्रकारिता का असली काम है जनता से संवाद करना, उनके दर्द को समझना और उन्हें सच्चाई से जोड़ना? अगर दूसरा सच है, तो फिर केवल एआई से काम नहीं चलेगा।
भावनात्मक जुड़ाव की कमी — बड़ी समस्या : मानव पत्रकार एक मुस्कान से, एक विराम से, एक शब्द के चयन से दर्शकों से भावनात्मक रिश्ता बना लेता है। वह दर्शकों की संवेदनाओं को समझता है और उसी के अनुरूप बोलता है। लेकिन एआई एंकर एक पूर्व-निर्धारित स्क्रिप्ट पर चलता है। उसमें करुणा नहीं होती, हंसी नहीं होती, न ही कोई उत्साह। दर्शकों को यह एहसास होता है कि कोई मशीन उनसे बात कर रही है, न कि कोई इंसान जो उन्हें समझता है।
भ्रम और विश्वास का संकट : एक और बड़ा सवाल है पारदर्शिता का। जब दर्शक यह न जान पाएं कि उनके सामने जो एंकर बोल रहा है वह इंसान है या मशीन, तब भरोसा डगमगाने लगता है। अगर उन्हें बाद में पता चले कि वे इतने समय तक किसी मशीन से संवाद कर रहे थे, तो वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर सकते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हर बार जब कोई एआई एंकर खबर पढ़े, तो स्पष्ट रूप से बताया जाए – “यह एक कृत्रिम एंकर है।”
भाषा का बदलता स्वरूप — खतरे की घंटी : हिंदी पत्रकारिता हमेशा से विविधता और आत्मीयता से भरी रही है। अलग-अलग क्षेत्रों की बोली, स्थानीय मुहावरे और लोक-शैली की मिठास ने इसे खास बनाया है। लेकिन एआई मॉडल एक ही तरह की औपचारिक भाषा बोलते हैं। वे "चलो भैया", "क्या बात है!" जैसी बातों को न तो बोल सकते हैं, न समझ सकते हैं। इससे भाषा की विविधता खत्म हो रही है और पत्रकारिता एकरसता की ओर बढ़ रही है।
नौकरी का खतरा और नई चुनौतियाँ : एक और चिंताजनक पहलू यह है कि जैसे-जैसे एआई का प्रयोग बढ़ेगा, वैसे-वैसे पत्रकारों की पारंपरिक नौकरियाँ खतरे में पड़ सकती हैं। रिपोर्टिंग, लेखन, संपादन — ये सब अब मशीनों द्वारा किए जा सकते हैं। ऐसे में ज़रूरत है कि पत्रकार भी खुद को तकनीकी रूप से दक्ष बनाएं। उन्हें नए कौशल सीखने होंगे — जैसे डेटा विश्लेषण, एआई टूल्स का प्रयोग और संवाद की नई तकनीकें।
सुझाव — कैसे करें संतुलन? : स्पष्ट पहचान – हर एआई जनित सामग्री पर साफ लिखा जाए कि यह मशीन द्वारा बनाई गई है। भाषा में विविधता – एआई मॉडल को स्थानीय भाषा, मुहावरों और सांस्कृतिक संकेतों के साथ प्रशिक्षित किया जाए। मानव संपादन – हर समाचार को प्रकाशित करने से पहले किसी पत्रकार द्वारा देखा जाए और उसकी पुष्टि की जाए। नैतिक समिति – मीडिया संस्थानों में नैतिक समितियाँ बनें जो इस बात की निगरानी करें कि एआई का प्रयोग जिम्मेदारी से हो रहा है या नहीं। पुनः प्रशिक्षण – पुराने पत्रकारों और नवोदित छात्रों को एआई और डिजिटल पत्रकारिता के कौशल सिखाए जाएँ।
निष्कर्ष — तकनीक से सहयोग, लेकिन इंसानियत से संवाद : कृत्रिम एआई एंकर और चैटबॉट निश्चित रूप से हिंदी पत्रकारिता में एक बड़ा बदलाव लेकर आए हैं। वे तेज़, सस्ते और बहुभाषिक हैं। लेकिन पत्रकारिता सिर्फ सूचना नहीं, संवेदना भी है। सिर्फ गति नहीं, गहराई भी है। और सिर्फ तकनीक नहीं, नैतिकता भी है। इसलिए ज़रूरी है कि तकनीक को अपनाते हुए इंसानियत को न भूला जाए। पत्रकारिता को एक ऐसी साझेदारी की ओर बढ़ना होगा जहाँ एआई एक सहायक हो, न कि प्रतिस्थापक। जहाँ संवाद मशीन से नहीं, दिल से हो।
वरिष्ठ लेखक, पत्रकार, साहित्यकार एवं वैश्विक समूह संपादक, सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह