मेना और हिमालय की बातचीत, पार्वती तथा हिमवान् के स्वप्न तथा भगवान् शिव से मंगल ग्रह की उत्पत्ति का प्रसंग
शिव के समीप सारे अमंगल सदा मंगलरूप हो जाते हैं। इसलिए तुम पुत्री को शिव की प्राप्ति के लिए तपस्या करने की शीघ्र शिक्षा दो।
ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! हिमवान् की यह बात सुनकर मेना को बड़ी प्रसन्नता हुई। वे तपस्या मंे रूचि उत्पन्न करने के लिए पुत्री को उपदेश देने के निमित्त उसके पास गयीं। परंतु बेटी के सुकुमार अंग पर दृष्टिपात करके मेना के मन मंे बड़ी व्यथा हुई। उनके दोना नेत्रों में तुरंत आंसू भर आये। फिर तो गिरिप्रिया मेना में अपनी पुत्री को उपदेश देने की शक्ति नहीं रह गयी। अपनी माता की उस चेष्टा को पार्वतीजी शीघ्र ताड़ गयीं। तब वे सर्वज्ञ परमेश्वरी कालिका देवी माता को बारंबार आश्वासन दे तुरंत बोलीं।
पार्वती ने कहा-मां! तुम बड़ी समझदार हो। मेरी यह बात सुनो। आज पिछली रात्रि के समय ब्रह्ममुहुर्त में मैंने एक स्वप्न देखा है, उसे बताती हूं। माताजी! स्वप्न में एक दयालु एवं तपस्वी ब्राह्मण ने मुझे शिव को प्रसन्न करने के लिए उत्तम तपस्या करने का प्रसन्नतापूर्वक उपदेश दिया है।
नारद! यह सुनकर मेना ने शीघ्र अपने पति को बुलाया और पुत्री के देखे हुए स्वप्न को पूर्णतः कह सुनाया। मेनका के मुख से पुत्री के स्वप्न को सुनकर गिरिराज हिमालय बड़े प्रसन्न हुए और अपनी प्रिय पत्नी को समझाते हुए बोले। (शेष आगामी अंक में)