हिन्दी व्याकरण की शुरुआत भी माहेश्वर सू़त्रों से हो
डॉ. दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
यह सर्वविदित है कि भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत रही है जिसमें धर्म-कर्म, विज्ञान, गणित, ज्योतिष, व्याकरण, वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत आदि भरा पड़ा है। संस्कृत के मूल वर्ण ही हिन्दी में आये। इन्हीं वर्णों को समय एवं देश-काल को ध्यान रखते हुए मामूली परिवर्तन कर अद्यतन किया गया। इन्हीं वर्णों को आवश्यकतानुसार थोड़ा घटा बढ़ाकर बच्चों को हिन्दी, संस्कृत,पाली, प्राकृत, मराठी, कोंकणीं, गुजराती आदि भाषा सिखा रहे हैं, इसलिए आज आवश्यकता है सर्वप्रथम उन्हें माहेश्वर सूत्रों की जानकारी अनिवार्यतः दी जानी चाहिए तभी वह देवनागरी लिपि को सही तरीके से समझ पायेगा साथ ही मात्राओं तथा उच्चारण संबंधी गलती भी नहीं करेगा। इसके लिए भाषा व्याकरण के बीज मंत्र के रूप में यह श्लोक प्राचीन काल से ही बहुत प्रसिद्ध है -
*नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नव पंच वारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद् विमर्शे शिवसूत्र जालम्।।
जैसा कि इस श्लोक में कहा गया है सनकादि ऋषियों की भाषाई तथा संगीत ज्ञानोत्सुकता के समाधान लिए भगवान शंकर ने स्वयं तांडव नृत के पश्चात अपना डमरू बजाया जिससे चौदह ध्वनि निकली,वही ध्वनियां चतुर्दश माहेश्वर सूत्र के नाम से विश्व विख्यात हुईं। इन ध्वनियों को ही आधार मानकर महर्षि पाणिनि ने एक विशालकाय व्याकरण शास्त्र रच दिया है। जिसे अष्टाध्यी ग्रंथ में चार हजार सूत्रों में लिपिबद्ध किया है।
इन सूत्रों में पहले दो में अइउऋऌ  5 ह्रस्व स्वर हैं। तीसरे तथा चौथे सूत्र में एओऐऔ 4 दीर्घ स्वर हैं। इस तरह संस्कृत में कुल 9 स्वर होते हैं जिन्हें अच् कहते हैं।
5 वे तथा 6 ठे सूत्र में अंतःस्थ वर्ण हैं। सातवे सूत्र में पंचम वर्ण हैं। 8 वें तथा 9 वे सूत्रों में चतुर्थ वर्ण, दसवे सूत्र में तृतीय वर्ण समाहित है। 11 वे सूत्र में द्वितीय वर्ण तथा प्रथम वर्ण च ट त है।
12 वे सूत्र में क और प दो प्रथम वर्ण हैं।
अंतिम 13 वें तथा 14 वें सूत्रों में ऊष्म वर्ण हैं। इस प्रकार 33 व्यंजन जिन्हें हल् कहा जाता है।
लघु कौमुदी के अनुसार संस्कृत में कुल 9 स्वर तथा 33 व्यंजन कुल 42 वर्ण होते हैं। बाद में चार दीर्घ स्वर आ ई ऊ ॠ जोड़ कर 46 हो गई। 
इन्हीं वर्णों से हिन्दी स्वरों में संस्कृत के दीर्घ ऋ, तथा ऌ को हटाकर अं अः को आयोगवाह के रूप में माना। व्यंजनों में क्ष त्र ज्ञ श्र ड़ ढ़ को जोड़कर संख्या 52 हो गई। वैदिक संस्कृत में 63 या 64 वर्ण हैं।
         *माहेश्वर सूत्र* 
   १.अइउण्। २. ऋऌक्।  ह्रस्व 
३. एओङ्। ४. ऐऔच्।   दीर्घ 
  ५. हयवरट्।६. लण्।    अंतःस्थ 
७. ञमङणनम्।        पंचमवर्ण 
. ८. झभञ् ९.घढधष्।  चतुर्थवर्ण 
१०. जबगडदश्।       तृतीयवर्ण 
११.खफछठथचटतव्। द्वि+ प्रथम 
 १२. कपय्।               प्रथमवर्ण 
 १३. शषसर्।१४. हल्  ऊष्मवर्ण

ध्यान रहे इसमें पांचवें सूत्र के ह को नाभि से संबंध होने के कारण नहीं गिना जाता है। साथ ही प्रत्येक सूत्र के अंतिम अर्द्ध वर्ण को भी गणना नहीं की जाती है। 
इस लेख के माध्यम से हम सभी यह भलीभांति जान चुके हैं हमारी भाषाई शिक्षा को भी अंग्रेजों ने तोड़ मरोड़ कर मनमाने ढंग से हमारी संस्कृति से अलग कर दिया है। अब समय आ गया है नई शिक्षा नीति के तहत प्रत्येक स्कूल की मुख्य दीवार पर यह बीज मंत्र रूपी श्लोक और माहेश्वर सूत्र लिखे जाना चाहिए ताकि छात्र तथा शिक्षक विद्यालय में प्रवेश से पहले ही एक बार पढ़कर मूलभूत ज्ञान जान सकें।
दरबार कोठी 23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश
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