लोकसभा चुनावों में खुद को सियासत और सियासी गतिविधियों से दूर रखेगी दारूल उलूम

शि.वा.ब्यूरो, देवबंद। देवबंदी मसलक के धार्मिक शिक्षण केंद्र दारूल उलूम देवबंद ने आज यह साफ कर दिया कि 18 वीं लोकसभा के होने वाले चुनावों में यह संस्था खुद को सियासत और सियासी गतिविधियों से दूर रखेगी। संस्था के प्रमुख मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी बनारसी ने आज खास बातचीत में कहा कि दारूल उलूम खालिसी तौर पर एक इस्लामिक शिक्षण संस्था है जो राजनीति से पूरी तरह से परहेज करती है। उन्होंने कहा कि देश का मुसलमान अपनी इच्छा से मतदान करने के लिए स्वतंत्र है। वह जिस पार्टी का समर्थन करें और चाहे जिसे अपना वोट डाले। हम चुनावों के दौरान मुसलमानों के लिए ना तो कोई फतवा जारी करेंगे, ना कोई निर्देश देंगे और ना ही कोई मशवरा देंगे। दारूल उलूम देवबंद डेढ़ सौ सालों से भी पुरानी दीनी संस्था है। देशभर के साढ़े तीन हजार से भी ज्यादा छात्र यहां शिक्षा ग्रहण करते हैं। जिनका पूरा खर्चा संस्था उठाती है। यह संस्था पूरी तरह से दान-चंदे पर आश्रित है। दारूल उलूम से देशभर के तीन हजार मदरसे संबद्ध है। लेकिन मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी का कहना है कि इन मदरसों से दारूल उलूम का वास्ता छात्रों को पढ़ाए जाने वाली शिक्षा और पाठ्यक्रम तक ही सीमित है। बाकी मामलों में ये मदरसे क्या करते हैं क्या नहीं करते हैं दारूल उलूम का उससे कोई लेना-देना नहीं है।

इस सवाल के जवाब में कि मौजूदा हुकूमत के दौरान मुसलमानों के हितों को लेकर कई ऐसे कदम सरकार द्वारा उठाए गए हैं तो ऐसी सूरत में दारूल उलूम चुनावों के दौरान पूरी तरह से खामोशी अख्तियार रखेगा। उन्होंने कहा कि मसले अपनी जगह हैं। उन्हें उठाने के लिए दूसरे मंच मौजूद हैं। दारूल उलूम की भूमिका तालीम देने तक ही सीमित है। देश की सियासत और सियासतदानों से इस संस्था का कोई लेना-देना नहीं है। एक अन्य सवाल के जवाब में मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि चुनावों के दौरान यदि कोई राजनेता, मंत्री या विपक्षी दल का सदस्य दारूल उलूम आता है तो संस्था के पदाधिकारी और प्रशासन उनकी अगुवानी और उनका स्वागत नहीं करेगा। ना उनसे भेंट करेंगा। संस्था हर समय सभी के लिए खुली है लेकिन चुनावों में हम पूरी तरह से राजनीति और राजनेताओं से दूरी बनाकर रखते हैं। इस बार भी उसका कड़ाई से पालन किया जाएगा।

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