मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हम लोग आध्यात्मिक एवं धार्मिक लोग प्रायः रोजाना ही दिनचर्या एवं नियमित पूजा पाठ में सर्वाधिक लोकप्रिय तथा धार्मिक ग्रन्थों में सबसे सरल एवं संक्षिप्त तथा लगभग सभी भाषाओं में उपलब्ध सुंदरकांड एवं हनुमान चालीसा पाठ करते हैं। अनेक संस्थान दिनभर हनुमान चालीसा पाठ करवाने के साथ साथ संपुट लगाकर संगीतमय सुंदरकांड पाठ भी करवाते हैं लेकिन इस छोटे से हनुमान चालीसा में लिखी गई चौपाईयों के अर्थ लगभग लोगों को मालूम नहीं ना ही किसी ने शायद कोशिश की परंपरागत परिवार खानदान समाज एवं देखा देखी करते हैं। इसलिए अशुद्धि तो होना स्वाभाविक ही है लेकिन इसका धार्मिक लाभ भी कितना है यह एक विचारणीय विषय जरूर है फिर भी हम सौ प्रतिशत समर्थन करते हैं कि भक्त एवं भगवान् से संपर्क तो अवश्य होता है। यह बहुत ही आवश्यक है कि जो हम धार्मिक आयोजन करते हैं उनके बारे में जानना बहुत ही जरुरी है। आजकल तो कथाकार एक एक विषय पर वृतांत के साथ मनोरंजक अंदाज में समझाते भी है।
मात मुझे दिजे किछु चिन्हा जैसे रघुनायक मोहे दिन्हा
चुङामणि उतरी तब दयउ, हर्ष समेत पवनसुत लयउ (सुंदरकांड में हनुमान सीता प्रसंग)
अर्थात हे माता मुझे भी ऐसी कोई निशानी दिजिए जैसे श्रीराम ने दी थी ताकि उन्हें संपूर्ण संतुष्टि हो जाए तब सीता ने चुङामणि उतार कर दी एवं हनुमान ने खुश हो कर ली।
कहेउ तात अस मोर प्रणामा, सब प्रकार प्रभु पूर्ण कामा
दीन दयाल बीरद संभारी, हरहूं नाथ मम संकट भारी
अर्थात हे तात! ( तात का उपयोग बेटा एवं पिता दोनों के लिए उपयुक्त समय में बहुत ही आत्मीयता के साथ इस्तेमाल किया जाता है यहाँ सीता ने पुत्र कहा है) प्रभु के चरणों में मेरा बार बार प्रणाम कहना तथा मेरी हर कामना को पूरा करने के लिए निवेदन करना। दीनों के नाथ को कहना कि भक्तों की रक्षा करने वाले मेरे भारी संकट से यथाशीघ्र निजात दिलायें। यह अवधी भाषा में है लेकिन गहन अध्ययन एवं श्रवण करने से चरमानंद की प्राप्ति होती है, इसलिए पूजा अर्चना करने एवं दान देने के समय जानना जरूरी है कि इसका औचित्य एवं मायने क्या है।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम