बच्चों को मोबाइल से दूर रखें जिद्द के आगे हार ना माने
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
आजकल एक अथवा दो बच्चे ही होते हैं वो भी गर्भ से पृथ्वी तक आने तक दवाओं डाक्टरों एवं नर्सों पर निर्भर रहता है। हर महीने जांच इंजेक्शन एवं डाक्टरों द्वारा निर्देशित तालिका के अनुसार ही बच्चों की परवरिश की जाती है। यदि माँ  बाप दोनों सेवारत है तो नौकरों पर निर्भर रहते हैं क्योंकि एकल परिवारों में आजकल दादा दादी अथवा नाना नानी तो बहुत ही शौभाग्य से बच्चों को मिलता है‌। फिर भी बच्चों को खाना खिलाने उनका दिल बहलाने के लिए मोबाइल पर उनके मनचाहे मनोरंजक खेलों के भूत प्रेत अथवा  नृत्य एवं अन्य तरहों के खेल देखते हैं एक से पांच सात साल के बच्चे  वैसे ही नौटंकी जिद्द एवं बाल्यकाल में हरकत करने लगता है लेकिन नादानी के कारण अथवा लापरवाही के कारण बच्चों में यह आदत पड़ जाती है वही बच्चे जिद्द करने लगते हैं तो व्यस्त अभिभावक उसकी सब मांगों को मान लेते हैं। यही जिद्द एक दिन इतनी घातक साबित हो सकती है कि कोई कल्पना तक नहीं कर सकता। 
बच्चों को शुरुआत में ही पूजा अर्चना में शामिल करने के साथ साथ उन्हें कुछ आरती पूजा के भजन कीर्तन पूजा पद्धति एवं बङों को प्रणाम करने हाथ जोड़कर झुकने एवं पांव छुने सीखाना चाहिए। आजकल नन्हें नन्हें बच्चों को अंग्रेजी के विद्यालयों में भर्ती करवा दिया जाता है वहाँ खेलने कुदने पढने एवं गीत संगीत में भी कंप्यूटर के अनुसार सीखाया जाता है इससे बच्चे समय से पुर्व ही सयाने तथा बहुत कुछ सीख जाते हैं। उन्हें हिंदी अंग्रेजी अपनी मातृभाषा के साथ स्थानीय भाषा भी सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बच्चों को आवश्यकता से अधिक आजादी देने के बजाय थोड़ा बहुत नियंत्रण एवं पैनी नजर हर अभिभावक को रखनी चाहिए। 
बच्चों को भारतीय संस्कृति के साथ जन्म दिन भी मनाना चाहिए। भले ही केक काटनी पङे लेकिन उसे तिलक लगाकर पूजा अवश्य कराने के साथ साथ सौ पचास चाकलेट बांटने के लिए देनी चाहिए ताकि आज अपने सहपाठियों को बांट सके तो भविष्य में भारतीय संस्कृति के साथ जन्म दिन मनाकर गरीब लोगों में इस अवसर पर कुछ वितरण की आदत अपने आप पङ जायेगी‌। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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