थप्पड़ ( लघुकथा)
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
गाँव के राजकीय माध्यमिक विद्यालय में सभी छात्रों को सुबह प्रार्थना के साथ लगातार आठ विषयों को पढाया जाता था जिसका निरिक्षण प्रधानाध्यापक निरंतर करते थे। सप्ताह में एक दिन शारीरिक परिश्रम के लिए विद्यालय की आधे घंटे सफाई सामूहिक रूप से की जाती थी। एक दिन बालसभा में बौधिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम किया जाता था। हालांकि सरकारी स्कूल होते थे, फिर भी गुरु शिष्य परंपरा स्थापित होती थी। बारी-बारी से सभी विद्यार्थी अध्यापकों के निवास में कुंएं से लाकर पानी भरते दोनों समय खाना पकाते थे, इसलिए अध्यापकों एवं शिष्यो का गुरु शिष्य का रिश्ता बन जाता था। 
निश्चित रूप से इससे पक्षपात होना स्वाभाविक ही था। विज्ञान के अध्यापक एक शिष्य रामावतार से अव्वल दर्जे के छात्र से अधिक आशा थी। एक दिन पढा रहे थे तो बार बार छात्र को नींद आने के कारण टोक रहे थे लेकिन रात में सत्संग करने के कारण छात्र की आंख फिर लग गयी तो अत्याधिक गुस्से में अध्यापक ने रामावतार को जमकर थप्पड़ मार दिया। बच्चे का पैसाब निकल गया। मास्टर क्लास छोड़ कर चला गया तो छात्र भी झोला उठा कर घर चला गया। 
आज विज्ञान के अध्यापक का स्थानांतरण होने के कारण विदाई सभा थी तो अपने संबोधन में कहा कि मुझे दो बातों का दुख है कि मैंने जीवन में एक भगवान् भक्त अव्वल एवं मासुम छात्र को थप्पड़ मारा लेकिन मुझे दुसरा दुख यह भी है कि मेरी बदली हो गई इसलिए उस छात्र को दुसरा थप्पड़ नहीं मार पाया यदि मार देता तो वो बहुत ही बङा इंसान बन जाता हालांकि वो कभी ना कभी बङा इंसान बनकर हम सब का नाम रोशन करेगा बोलकर द्रवित होकर आंख पोंछते हुए बैठ गए। 
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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