शिवपुराण से....... (406) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता, द्वितीय (सती) खण्ड

गणों के मुख से और नारद से भी सती के दग्ध होने की बात सुनकर दक्ष पर कुपित हुए शिव का अपनी जटा से वीरभद्र और महाकाली को प्रकट करके उन्हें यज्ञ विध्वंस करने और विरोधियों को जला डालने की आज्ञा देना  

गतांक से आगे........ उन सबको जलाकर भस्म कर देने के पश्चात् फिर शीघ्र लौट आना। तुम्हारे वहां जाने पर विश्वेदेव आदि देवगण भी यदि सामने आ तुम्हारी सादर स्तुति करें, तो भी तुम उन्हें शीघ्र आग की ज्वाला से जलाकर ही छोड़ना। वीर! वहां दक्ष आदि सब लोगों को पत्नी और बन्धु-बान्धवों सहित जलाकर ;कलशों में रखे हुएद्ध जल को लीलापूर्वक पी जाना। 

ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! जो वैदिक मर्यादा के पालक, काल के भी शत्रु तथा सबके ईश्वर हैं, वे भगवान रूद्र रोष से लाल आंखे किये महावीर वीरभद्र से ऐसा कहकर चुप हो गये।                                              (अध्याय 32) 

प्रमथगणों सहित वीरभद्र और महाकाली का दक्ष यज्ञ विध्वंश के लिए प्रस्थान, दक्ष तथा देवताओं को अपशकुन एवं उत्पादसूचक लक्षणों का दर्शन एवं भय होना 

ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! महेश्वर के इस वचन को आदरपूर्वक सुनकर वीरभद्र बहुत संतुष्ट हुए। उन्होंने महेश्वर को प्रणाम किया। तत्पश्चात् उन देवाधिदेव शूली की उपर्युक्त आज्ञा को शिरोधार्य करके वीरभद्र वहां से शीघ्र ही यज्ञमण्डप की ओर चले।                                                                    (शेष आगामी अंक में)

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