हिन्दी व बिंदी
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
भारत माता के मस्तक पर रक्त्वर्ण सी बिंदी है
कलकल छलछल बहती नदियाँ
सबकी वाणी हिंदी है
हिंदी व बिंदी की कीमत
सबको समझ नही आती
बिन बिंदी वो रहे अधुरी
पूर्ण रुप वो ना पाती
बने दसणुणा मुल्यवान वो
जिसके पास चली जाती
इसी रुप में देश विदेश में
हिंदी भाषा की है ख्याति
इस छोर से उस दिसा तक
सर्वाधिक बोली जाती
कथनी व करनी दोनों में
समता भाव है दर्शाती
विदेशी भाषा के चक्कर में
संस्कृति सभ्यता क्षीण हुई
मातृभाषा राष्ट्र भाषा
दोनों ही दीन हीन हुई
भूल है हमसे भारी 
चंदन की बिंदी लगायेंगे
मदन सिंघल आज से हम
हिंदी भाषा अपनायेंगें
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर असम
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