शिवपुराण से....... (400) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता, द्वितीय (सती) खण्ड
आकाशवाणी द्वारा दक्ष की भर्त्सना, उसके विनाश की सूचना तथा समस्त देवताओं को यज्ञमण्डप से निकल जाने की प्रेरणा 
इन देवताओं में कौन ऐसा है, जो सर्वेश्वर शिव से विमुख होकर तेरी सहायता करेगा? मुझे तो ऐसा कोई देवता नहीं दिखायी देता। यदि देवता इस समय तेरी सहायता करेंगे तो जलती आग से खेलने वाले पतंगों के समान नष्ट हो जायेंगे। आज तेरा मुंह जल जाये, तेरे यज्ञ का नाश हो जाये और जितने तेरे सहायक हैं, वे भी आज शीघ्र ही जल मरें। इस दुरात्मा दक्ष की जो सहायता करने वाले हैं, उन समस्त देवताओं के लिए आज शपथ है। वे तेरे अमंगल के लिए ही तेरी सहायता से विरत हो जायें। समस्त देवता आज इस यज्ञमण्ड़ से निकलकर अपने-अपने स्थान को चले जायें, अन्यथा सब लोगों का सब प्रकार से नाश हो जायेगा। अन्य सब मुनि और नाग आदि भी इस यज्ञ से निकल जायें अन्यथा आज सब लोगों का सर्वथा नाश हो जायेगा। श्रीहरे! और विधात! आप लोग भी इस यज्ञमण्ड़प से शीघ्र निकल जाईये। 
ब्रह्माजी कहते हैं-नारद! सम्पूर्ण यज्ञशाला में बैठे हुए लोगों से ऐसा कहकर सबका कल्याण करने वाली वह आकाशवाणी मौन हो गयी।              (अध्याय 31)
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