शिवपुराण से....... (399) गतांक से आगे.......रूद्र संहिता, द्वितीय (सती) खण्ड

आकाशवाणी द्वारा दक्ष की भर्त्सना, उसके विनाश की सूचना तथा समस्त देवताओं को यज्ञमण्डप से निकल जाने की प्रेरणा 

शिव ही जगत् का धारण-पोषण करने वाले हैं। वे ही समस्त विद्याओं के पति एवं सबकुछ करने में समर्थ हैं। आदि विद्या के श्रेष्ठ स्वामी और समस्त मंगलों के भी मंगल वे ही हैं। दुष्ट दक्ष! तूने उनकी शक्ति का आज सत्कार नहीं किया है, इसीलिए इस यज्ञ का विनाश हो जायेगा। पूजनीय व्यक्तियों की पूजा न करने से अमंगल होता ही है। तूने परमपूज्य शिवस्वरूपा सती का पूजन नहीं किया है। शेषनाग अपने सहस्र मस्तकों से प्रतिदिन प्रसन्नतापूर्वक जिनके चरणों की रज धारण करते हैं, उन्हीं भगवान् शिव की शक्ति सती देवी थीं। जिनके चरण कमलों का निरन्तर ध्यान और पूजन करके ब्रह्माजी ब्रह्मत्व को प्राप्त हुए हैं, उन्हीं भगवान् शिव की प्रिय पत्नी सती देवी थीं। जिनके चरण कमलों का निरन्तर ध्यान और सादर पूजन करके इन्द्र आदि लोकपाल अपने-अपने उत्तम पद को प्राप्त हुए हैं, वे भगवान् शिव सम्पूर्ण जगत् के पिता हैं और शक्तिस्वरूपा सती देवी जगत् की माता कही गयी हैं। मूढ़ दक्ष! तूने उन माता-पिता का सत्कार नहीं किया, फिर तेरा कल्याण कैसे होगा।

तुझपर दुर्भाग्य का आक्रमण हो गया और विपत्तियां टूट पड़ी, क्योंकि तून उन भवानी सती और भगवान् शंकर की भक्तिभाव से आराधना नहीं की। कल्याणकारी शम्भु का पूजन न करके भी मैं कल्याण का भागी हो सकता हूं, यह तेरा कैसा गर्व है? वह दुर्वार गर्व आज नष्ट हो जायेगा।                              

(शेष आगामी अंक में)

Comments