आजादी के बाद महिलाओं को 33% आरक्षण फिर भी.......

मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
हालांकि सताइस साल बाद प्रधान नरेंद्र मोदी ने अपने दुसरे कार्यकाल के लगभग अंतिम पङाव में काफी आपाधापी के बाद नये संसद भवन में महिलाओं को 33% आरक्षण देने के लिए लोकसभा में बिल पेश किया जो निश्चित रूप से सराहनीय कदम है। 
    इस बिल को पास कराने के लिए काफी पापङ बेलने पङे। इस बिल को पास होने में कुछ क्षेत्रीय दल अङचन डालक रहे। लेकिन सवाल यह भी है कि जब भाजपा के पास 2014 से ही बहुमत था तो नौ साल इंतजार क्यों किया। जबकि महिलाओं के लिए शौचालय गैस सिलेंडर आवास हर घर नल से जल जनधन योजना मुद्रा योजना सहित महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सिलसिलेवार काम किया लेकिन शायद समय की नजाकत देखकर अचानक बिल पेश किया गया।  राजनीतिक दल भी सकते में है कि विशेष सत्र में प्रधानमंत्री क्या कुछ करने वाले है अटकलों के बीच अचानक ऐसा किया गया। 
शास्त्रों एवं भारतीय संविधान में सपष्ट है कि महिलाओं को पुरुष के साथ सभी अधिकार है फिर आजादी के बाद किसी भी दल ने ऐसा क्यों नहीं किया। वास्तव में पुरुष प्रधान देश में महिलाओं को सामने आने का अवसर देने की पहल नहीं कर सके। अब तैतींस प्रतिशत आरक्षण मिल जाने से धीरे धीरे महिलाओं की बढती ताकत से एक समय ऐसा आयेगा कि बराबरी का हक माँगने की बजाय दल अपने आप देने के लिए मजबूर हो जायेंगे। 
कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी रही बहुजन समाज की मायावती तो तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी है, फिर भी उन्होंने कभी भी प्रयास नहीं किया कि अधिकाधिक महिलाओं को लोकसभा एवं विधानसभा में टिकट दिया जाए। इस कानून से चुनाव के मुहाने पर खड़े राजस्थान मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ तेलंगाना एवं मिजोरम में भी सभी दलों के लिए यह कङी चुनौती होगी। 
लोकसभा में आज 82 महिला सांसद है 2024 में 181 होगी। 1952 से 2023 तक मात्र 600 महिला सांसद होना सपष्ट है कि कोई भी दल अब तक पहल नहीं की।  युवाओं को अवश्य अवसर दिया गया लेकिन महिलाओं को अहमियत नहीं दी गई। जब तक कोई देश समाज महिलाओं एवं युवाओं को तरजीह नहीं देगा तब तक विकास संभव नहीं है।
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर असम 

Post a Comment

Previous Post Next Post