लटकना मत
रेखा घनश्याम गौड़, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 
ज़िंदगी की मुश्किलों से हारना थोड़े ही है,
मैं ज़िंदा हूँ 
अभी तो कल तक
ज़िंदा ज़िंदा रहना ज़रूरी है।
क्या हुआ 
जो दिन बीते 
अकेले मुख पर 
और उसके बाद 
जीवन में कभी 
अरुणोदय नहीं हुआ,
याद बस इतना रखना
 लटकना नहीं हैं।
माँ की आखें धुंधला जायें इंतज़ार में,
पिता के हृदय का प्रसफुटन
रो-रो कर ठक जाये,
बाहनें रखी पर 
तुम्हारी कलाई का 
रोना ना रोने पाये,
भाई अपने आल्हड़पन को 
किसके साथ बिताये?
याद रखना मेरी ये बात, 
तुम शेर हो 
गीदड़ की मौत मरना मत,
चाहे जो हो जाये लटकना मत,
लटकना मत।
जयपुर, राजस्थान
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