सात जन्मों के बंधन तोड़ के
मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। 
सात जन्मों के बंधन तोड़ के
वादा किया था निभाने को
क्यों मुकर गए अब ऐ साथी
मत जा रे मितवा छोड़ के
मैंने कसम राष्ट्र धर्म की
खाई थी जब वर्दी पहनी
हाँ तुमसे भी खाई मैंने
लेकिन राही हम मोङ के
मृत्यु सनातन सच होती
जो एक दिन सभी को आनी है
वो खाते जीने के लिए
हम खाते मरने के लिए
बस यही एक कहानी है
मुझे गम नहीं है जाने का
तुम कोख निछावर कर देना
आज मुझे तू खोया है
निसंकोच उसे भी कर देना
जन्म पुनः हम पायेंगे
इसी धरा पर आयेंगे
देना भरपूर आशीष मुझे
कश्मीर आजाद करायेंगे
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम
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