डॉ. अवधेश कुमार "अवध", शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
नये वर्ष में नया नहीं कुछ,
फिर कैसे होगी जय- जय!
ठिठुर रहा तन शीतलहर से,
दिखता नहीं जगत निर्भय।
दिल से पुनः विचार करें,
इस विलायती फरमानों पर-
सहमत नहीं हुआ मैं साथी,
नहीं सार्थक यह निर्णय।
वसुधा लदी हुई कुहरे से,
अम्बर कांतिहीन लगता-
तुम्हें बधाई हो परिवर्तन,
मुझे न कहना मंगलमय।।
साहित्यकार व अभियंता मैक्स सीमेंट, ईस्ट जयन्तिया हिल्स मेघालय