ककरौली के मूलनिवासी थे रामपुर रियासत के मुख्यमंत्री कर्नल बशीर हुसैन जैदी
अमजद रजा, ककरौली। जनपद की जानसठ तहसील स्थित ककरौली के पैतृक कर्नल बशीर हुसैन जैदी सादात बाराह के वंशज थे। इनके पिता का नाम शौकत हुसैन था। बशीर हुसैन जैदी की पैदाइश 30 जुलाई 1898 को जमुना के किनारे स्थित कस्बा सांझा तहसील-बल्लभगढ़ तत्कालीन जिला देहली में हुई थी, जहां उन दिनों उनके पिता बहैसियत सब इंस्पेक्टर पुलिस मुलाजिम थे। प्रारंभिक शिक्षा के बाद बशीर हुसैन जैदी देहली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में दाखिल हुए। 1919 में कैम्ब्रिज गये और इतिहास व राजनीति शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद 1923 में बैरिस्टरी की परीक्षा पास की और वतन वापस आकर 1923 में अलीगढ़ यूनिवर्सिटी स्कूल के हैडमास्टर हो गये। यहां मार्च 1930 तक अध्यापन का काम किया। 10 जुलाई 1930 को नवाब रजा अली खाँ ने उन्हें रामपुर के हाइकोर्ट का प्यूनी जज नियुक्त किया। 18 फरवरी 1931 को वे रियासत के हाउसहोल्ड मिनिस्टर बनाए गये। 17 मई 1932 को वे स्थानापन्न चीफ मिनिस्टर नियुक्त हुए। चीफ मिनिस्टर सर अब्दुस्समद खाँ स्वास्थ्य की खराबी के कारण 6 माह के लिए 1931 से हर साल यूरोप चले जाते और जैदी साहब उनके स्थान पर काम करते थे। खान बहादुर मसऊदुल्हसन के मुख्यमंत्री पद से रिटायर होने पर कर्नल बशीर हुसैनी जैदी 1 दिसंबर 1936 को रियासत के चीफ मिनिस्टर बना दिये गये। द्वितीय विश्व युद्ध में वे रियासत रामपुर की सेना में आॅनरेरी कर्नल बनाए गये। तब से कर्नल उनके नाम का हिस्सा बन गया।
01 अप्रैल 1947 में रियासत बनारस और रियासत रामपुर की ओर से वह भारत की संविधान सभा के सदस्य बनाए गए। गैर रामपुरी और गैर मुकामी प्रतिनिधित्व की आपत्ति को लेकर रियासत के नवाब और चीफ मिनिस्टर के विरुद्ध जन आक्रोश फूट पड़ा। 4 अगस्त 1947 को रामपुर में भयंकर उत्पात हुआ। भारत के उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल से उनके निकट संबंध थे। वे अत्यंत दूरदर्शी, प्रतिभाशाली, सफल प्रशासक व सौम्य व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे मुँहमांगी शर्तों पर रियासत के केंद्र के साथ विलय कराने में सफल हुए। रियासत रामपुर के विलय का समझौता खुद कर्नल बशीर हुसैनी जैदी ने ही मिनिस्ट्री आॅफ स्टेट की सहायता से तैयार किया था। 15 मई 1949 को रियासत रामपुर का इंडियन यूनियन में विलय हो गया। नवाब रजा अली खां ने उनकी उत्कृष्ट सेवाओं की गजट 22 मई 1949 में मुक्त कंठ से सराहना की। रामपुर के औद्योगिक और शिक्षा संबंधी विकास में बशीर हुसैन जैदी ने अहम भूमिका निभाई थी। हुकूमते रामपुर से कंपनियों के मुआहिदात के दस्तावेजों के अनुसार वे रजा शुगर फैक्ट्री, बुलंद शुगर फैक्ट्री, मक्कामिल, रामपुर डिस्टीलरी, रामपुर मशीन टूल्स एंड इंजीनियरिंग कम्पनी, डाॅन माचिस फैक्ट्री, रामपुर इंडस्ट्रीज, सिविल एंड मिलिट्री कोआॅपरेटिव स्टोर लिमिटेड के बोर्ड आॅफ डाइरेक्टर्स में शामिल थे।
जैदी साहब का उद्योग और व्यापार से ऐसा ताल्लुक हुआ कि वे आजादी के बाद अनेकों कंपनियों के डायरेक्टर नियुक्त हुए। वे आठ साल तक रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के केंद्रीय बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स के सदस्य और मुंबई की मशहूर दवा निर्माता कंपनी सिपला के बोर्ड के अध्यक्ष रहे। नेशनल हैराल्ड, कौमी आवाज, और नवजीवन समाचार पत्रों की कंपनी एसोसिएटेड प्रेस लिमिटेड के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स के भी चेयरमैन रहे। रियासत के विलय के बाद वह भारत की संविधान सभा, जो अस्थायी पार्लियामेंट भी थी, उसके सदस्य की हैसियत से देहली चले गये और साल 1951 तक उसके सदस्य रहे। साल 1952 में वे हरदोई से लोकसभा के सदस्य चुने गये। 18 अक्टूबर 1956 से 18 अक्टूबर 1962 तक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे। दो बार राज्य सभा के मेम्बर बनाए गये। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने 1964 में और कानपुर यूनिवर्सिटी ने 1974 में उन्हें डी-लिट् की आॅनरेरी डिग्री दी। भारत सरकार से साल 1972 में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि मिली। वर्ष 1989 में उनकी 82वीं वर्षगाँठ पर लेखक मालिक राम द्वारा संकलित पुस्तक नजरे जैदी का लोकार्पण हुआ। 29 मार्च 1992 को दिल्ली के जामिया नगर स्थित जैदी विला में कर्नल बशीर हुसैन जैदी का देहान्त हुआ और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कब्रिस्तान में दफन हुए।
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