150 साल बाद आज भी जीवित है धारी-जुगनी की अमर प्रेम गाथा


डॉ जगदीश शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।

 

हिमाचल प्रदेश जिला मण्डी करसोग पांगणा से लगभग पांच किलोमीटर दूर लगभग 6000 फुट की ऊंचाई पर स्थित माना गांव अपने मे प्राकृतिक और सौंदर्य का अनुपम भंडार लिए हुए है। तकरीबन बारह परिवारों के 15 घरों वाले इस गांव में ठाकुर ही निवास करते हैं। माना एक खुशहाल  और समृद्ध गांव है। इस गांव ने बहुत सी ऐतिहासिक और धार्मिक गाथाओं  को अपने अंदर समेट रखा है। डा.जगदीश शर्मा एक कहावत का जिक्र करते हुए बताते है कि अधिकतर झगड़ों के पीछे जोरू और जमीन का मामला होता है और ये दोनों एक साथ हो तो यह झगड़ा खूनी संघर्ष में बदलना स्वाभाविक है। पांगणा उप-तहसील के अंतर्गत परेसी पटवार वृत के माना गांव में यह उक्ति चरितार्थ हुई है। इस अमर प्रेम गाथा से संबंधित मार्मिक इतिहास आज भी लोकगीत के रुप में पांगणा-सुकेत ही नहीं अपितु  पूरे हिमाचल प्रदेश में बहुत प्रसिद्ध है। माना के धर्मचंद सुकेत राज दरवार में पंच थे। सुकेत संंस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा के अध्यक्ष डॉक्टर हिमेंद्र बाली जी का कहना है कि अपने व्यवहार कौशल और प्रशासकीय चतुरता के कारण धर्मचंद एक लब्धप्रतिष्ठ व्यक्ति था। धर्मचंद का बेटा धारी पड़ौसी गांव चरखड़ी की रुपसी जुगनी के प्रणय पाश में बंध गया। धारी हालांकि विवाहित था, परन्तु जुगनी का अतुल सौंदर्य धारी को विमोहित कर गया। एक बार जब धारी जुगनी से मिलने गया तो उसने उसे किसी अन्य पुरूष के साथ संदेहास्पद स्थिति में देखा। अपनी प्रेयसी के गिरे चरित्र को देखकर धारी का विश्वास टूट गया। क्रोधावेश में धारी ने तेजधार चाकू से जुगनी का नाक काट डाला। शायद प्यार में टूटे धारी ने जुगनी के रूप को वह सजा दी, जिसकी वह पात्र थी। अपराध कर धारी सुकेत की राजधानी सुन्दरनगर की ओर निकल पड़ा। बरसात के दिन थे, नदी-नाले उफान पर थे। अलंघ्य नदी-नालों, घने जंगलों घाटियों को पार कर सुंदर नगर पहुंचकर धारी राजा के सम्मुख प्रस्तुत हुआ और अपने अपराध को स्वीकार कर आत्मसमर्पण किया। धारी को सजा मिली। जुगनी के रूप पर उसके दोगले चरित्र के कारण धब्बा लग गया। कुल और माना वासियों ने धारी का बहिष्कार कर दिया। धारी-जुगनी के प्यार की इस घटना पर प्रसिद्ध लोकगीत बना। आज भी 'यह अमर प्रेम गीत लोगों की जुबान पर है। इस गीत में  मुखर रंग प्रेम  का ही है। संस्कृति मर्मज्ञ डा. जगदीश शर्मा का कहना है कि समय के साथ-साथ इस लोकगीत के बोल/पद भी बदल गए, लेकिन घटना का वर्णन और लय वही है। निम्न सरल पदों में गाए जाने वाले नाटी गीत में  इस प्रेम गीत की यथार्थ घटना कुछ यूं वर्णित है।

        जुगनी रा नाकड़ु, धारी रा चाकू।

        हाय-हाय मेरी जुगनीए,धारी रा चाकू।।

        जुगनी रे घरा पीछो,फेगड़ा फेटा।

        हाय-हाय मेरी जुगनीए हां,ठाकरा रा बेटा।

        जुगनी रे घरा पीछो,पाणी री टांकी।

        तू ता आसी मुईए, सभी का बांकी।।

इस गीत की कुछ पंक्तियाँ और भी हैं _

        ऊभे ता पड़ा खंखड़ गराओं।

        ऊंधे  ता पड़ा बोलो माना।।

        डागे चारदे वणा ले चाली।

        धारीऐ ता लाई बोलो साना।।

        बैरी ता निकला,धारी गो तेरा।

        नाका दे मारा चाकुआ चीरा।।

        चींगदी ता लागी जुगनीए तू।

        चींगंदा ता लागा बापू बी तेरा।।

व्यापार मंडल पांगणा के प्रधान सुमित गुप्ता और संस्कृति मर्मज्ञ राज शर्मा(आनी) का कहना है कि जिस तरह से गांव का जीवन तेजी से बदल रहा है, लोक संस्कृति में भी उसी गति से भारी परिवर्तन हो रहा है। ऐसे में सत्य घटना पर आधारित लोकगीत, लोक गाथाएँ, देवप्रयाग गाथाएँ, संस्कार गीत और हमारी समृद्ध परंपराएं एक दिन अपने मूल स्वरूप को खो दे, इसमें कोई आश्चर्य नहीं। 

साहित्यकार और शिक्षाविद डा. हिमेन्द्र बाली "हिम" का कहना है कि लोकगीतों में हमारे समाज की आत्मा निवास करती है।लोकगीत लोकानुरंजन के साथ साथ समाज को सीख देते हैं। साथ ही इतिहास और संस्कृति का भी लोकगीत प्रतिनिधित्व करते हैं।


पांगणा करसोग (मण्डी) हिमाचल प्रदेश

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