राज शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
विश्व पटल पर 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है । महिलाओं के विशेष रूप से मान सम्मान व गरिमा को कायम रखने के लिए इस सुनिश्चित दिवस को महिला दिवस का नाम दिया गया । लगभग पन्द्रह हज़ार महिलाओं ने सन 1908 में न्यूयार्क में इकठा होकर मार्च निकाला था, जिनकी मुख्य मांग महिलाओं को विशेष अधिकारों से नवाजा जाए और नौकरी पर कुछ घण्टे कम किए जाए। इसके बाद सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने यह दिन चुना और 8 मार्च को राष्ट्रीय महिला दिवस प्रथम बार मनाया गया ।
1975 को महिला दिवस पर अधिकारिक मान्यता दी गयी
वर्ष 1917 में रूस देश की महिलाओं ने भोजन और अमन की मांग की। महिलाओं के शक्ति प्रदर्शन एवं हड़ताल से रूस में सम्राट निकोलस को अपने पद छोड़ने पर बाध्य किया गया, जिसके कारण सरकार ने महिलाओं को मतदान का भी अधिकार दे दिया था। प्रत्येक आयोजन गृह गृहस्थी समाज, बिन स्त्री के इन सबकी कल्पना करना नामुमकिन सा है। महिलाएं अपने अधिकारों एवं समस्त प्रकार की चुनौतियों के लिए सृष्टि के आरंभिक काल से ही सजग है। जब तक कोई भी समाज महिलाओं को घृणा से देखेगा और उनको अधिकारों से दूर रखेगा, तब तक कोई भी देश तरक्की की राह सुनिश्चित नहीं कर सकता है। इसके बाबजूद जहां स्त्रियों ने स्वयं के अधिकारों को जानकर समाज व दुनियों को नई राह प्रदान की, वहीं सशक्त नारी शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ है ।
वेदों व व्यवहारिक प्रचलन में नारी को प्रेम एवं त्याग की मूर्ति कह कर सम्बोधित किया गया है, परन्तु समाज व दुनिया में ऐसा कतई नहीं है। जिस देश मे नारियों को इतना सम्मान प्राप्त है, आज दुर्भाग्य आन पड़ा है कि स्त्रियों को मां सम्मान तो दूर उसके हक से भी दूर रखा जा रहा है। दहेज के लोभी मेहंदी सूखने से पहले ही जिंदा आग में जला देते हैं और कुछ नासमझ गर्भ में ही नन्ही सी बच्चियों को मार देते हैं। आए दिन नए नए अजीबोगरीब घटनाएं महिलाओं के ऊपर होते रहते हैं, फिर भी सरकार महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गभीर नहीं है।
आज महिलाएं सभी तरह के कार्यों के लिए पुरूषों के साथ एक जुट होकर साथ खड़ी है। आवश्यकता है तो सिर्फ दोनों को बराबरी का हकदार बनाने की। समाज की कुछ बुरी कुरीतियों पर प्रतिबंध लगाकर एक नए समाज का निर्माण करना होगा, जिसमें महिलाएं अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सके।
संस्कृति संरक्षक आनी कुल्लू हिमाचल प्रदेश
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