उमा ठाकुर, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
बच्चों की किलकारी संग
रंग-बिरंगी पिचकारी संग
सूरज की किरणें सा
बिखरे रंग एक समान
रंग बिना जीवन नीरस
जैसे बिन शब्द कोरा कागज
हर रंग मानवता में सिमटे
जिन्दगी के कैनवास पर
रंग समरसत्ता के बिखरे
न हो खौफ किसी वायरस का
खिले हर चेहरा जो है मुरझाया सा
नशा, व्याधि का दानव मिटे
हो हर बेटी महफूज गली, शहर
सतरंगी सपनो को उड़ान मिले
बच्चों संग बच्चा बन
जी ले फिर से बचपन
उधड़ी स्वेटर सी जिन्दगी में
बिना गांठ रंगों के धागे बुन ले
होली के रंग में रंगकर
खुशियों के इन्द्रधनुष से
दूषित होती संर्कीण सोच को
ओड़ लें बादलों की चुनरी
आओ मिलकर रंग बिखेरे
आओ मिलकर रंग बिखेरें
आयुष साहित्य सदन, पंथाघाटी, शिमला-9
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