(प्रदीप कुमार सिंह), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 22 दिसम्बर 1992 में की गयी घोषणा के अनुसार प्रत्येक वर्ष 17 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन के रूप में मनाया जाता है। चलिए, हम भी एक ऐसा विश्व बनाने में अपना योगदान दें, जिसमें कोई भूखा न रहे, किसी को वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अन्य मौलिक अधिकारों से वंचित न रहना पड़े। संसार में सभी को समान अवसर तथा अधिकार मिले। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य विश्व समुदाय में गरीबी दूर करने के लिए किये जा रहे प्रयासों के संबंध में जागरूकता बढ़ाना है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य में यह बताया गया है कि किसी एक विशेष कारण के चलते नहीं बल्कि गलत कानूनों की वजह से भी लोगों को गरीबी में जीवन यापन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसलिए यह आवश्यक है कि केवल आय का स्रोत एवं आमदनी के साथ बढ़ती मंहगाई, भोजन, घर, भूमि, स्वास्थ्य आदि भी गरीबी के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
क्रान्तिकारी विचारक विश्वात्मा भरत गांधी का मानना है कि वोटरशिप अधिकार कानून बनाकर विश्व के करोड़ों लोगों द्वारा भूख तथा गरीबी से प्रतिदिन लड़ा जा रहा युद्ध अब हमें मिलकर जीतना ही है। वोटरशिप योजना का जन्म बहुमुखी प्रतिभा के धनी संविधानविद्, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री तथा राजनैतिक सुधारक विश्वात्मा भरत गांधी के 25 वर्षांें के संघर्षपूर्ण जीवन से हुआ है। वोटरशिप योजना के अन्तर्गत देश के प्रत्येक वोटर को उसके हिस्से की आधी धनराशि जो कि वर्तमान में लगभग रूपये छः हजार प्रतिमाह बनती है, उसको कानून बनाकर बैंक खाते में ट्रान्सफर करने की मांग भारत सरकार से की जा रही है। वोटर के हिस्से की आधी धनराशि को सरकार द्वारा विकास कार्यों में उपयोग करने का सुझाव दिया गया है।
भारतीय मूल के अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार विजेता श्री अभिजीत बनर्जी ने विश्व बिरादरी का ध्यान वैश्विक गरीबी की ओर आकर्षित किया है। श्री अभिजीत बनर्जी को गरीबी पर शोध के लिए अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार के लिए चुने जाने का शुभ समाचार पाकर देश के लगभग 80 करोड़ भारतीयों में आशा की किरण जगी है। वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा नोबेल पुरस्कार श्री अभिजीत को उनकी पत्नी श्रीमती एस्थर डुफ्लो तथा श्री माइकल क्रेमर के साथ दिया जायेगा। आपके स्वास्थ्य क्षेत्र में सब्सिडी देने वाले माॅडल को कई विकासशील देशों में लागू किया गया। आपकी शोध से देश के 50 लाख दिव्यांग बच्चों को लाभ हुआ है। हमें पूरा विश्वास है कि उनके प्रयोगों से वैश्विक स्तर पर भूख और गरीबी दूर करने से मानव जाति लाभान्वित होगी। भारतीय मूल के अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार विजेता श्री अभिजीत बनर्जी तथा उनके दो साथियों को चुनकर विश्व बिरादरी ने भीषण गरीबी की मार झेल रहे करोड़ों लोगांे के लिए चिन्ता जतायी है! वल्र्ड लीडर्स को गरीबी उन्मूलन को एक बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार करके संवेदनशील बनकर वोटरशिप अधिकार कानून बनाकर गरीबी का नमोनिशान इस धरती से मिटाना चाहिए। वर्तमान तथा भावी पीढ़ी सहित आगे जन्म लेने पीढ़ियों के लिए यह हमारा सबसे बड़ा तथा ऐतिहासिक फैसला होगा।
भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बच्चों के अधिकारों के लिए किये गए कार्य के लिए श्री कैलाश सत्यार्थी को 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। जो उन्हें पाकिस्तान की नारी शिक्षा कार्यकर्ता मलाला युसुफजई के साथ सम्मिलित रूप से प्रदान किया गया है। उन्होंने 1980 में बचपन बचाओ आन्दोलन की स्थापना की जिसके बाद से वे विश्व भर के 144 देशों के 83,000 से अधिक बच्चों के अधिकारों की रक्षा के तथा बाल श्रम के महत्वपूर्ण कार्य कर चुके हैं। नोबेल पुस्कार विजेता बनने के बाद वे वैश्विक स्तर पर और अधिक सक्रिय हंै।
24 सितंबर 2019 यूएन के सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन पर पर्यावरण रक्षक कार्यकर्ता स्वीडन की 16 साल की स्कूली छात्रा ग्रेटा थनबर्ग ने दुनियाभर के नेताओं को डाँटते हुए बहुत कुछ कहा? ग्रेटा थनबर्ग ने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण से विश्व नेताओं को झकझोर कर रख दिया। उन्होंने विश्व नेताओं पर जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने में विफल रहने का आरोप लगाया। ग्रेटा थनबर्ग ने न्यूयॉर्क में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में कहा, आपने हमारे सपने, हमारा बचपन अपने खोखले बयानबाजी से छीन लिया है।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा आयोजित एक दिवसीय बैठक में दुनिया भर के करीब 60 शीर्ष नेताओं ने हिस्सा में हिस्सा लिया था। ग्रेटा थनबर्ग ने अपने भावुक भाषण में कहा, यह पूरी तरह से गलत है। मुझे यहां नहीं होना चाहिए था। मुझे महासागर पार स्कूल में होना चाहिए था। उन्होंने अपनी पढ़ाई से एक साल का अवकाश ले रखा है। उसने विश्व के नेताओं से कहा कि आपने अपनी खोखली बयानबाजी से मेरे सपनों और मेरा बचपन छीन लिया। उसने यह भी कहा कि हम आप पर नजर रखेंगे।
भारत की 14वीं लोकसभा में एक अभूतपूर्व कार्य हुआ था। देश के अधिकांश सांसदों ने वोटरों के हित में एक असाधारण फैसला लेने की बात को मान लिया था। अगर यह फैसला संसद के जरिये कानून का रूप ले लेता तो आज देश में एक भी वोटर, किसान, मजदूर, बेरोजगार, आर्थिक तंगी के कारण जनलेवा बीमारी से या आत्महत्या करके मरने के लिए विवश नहीं होना पड़ता। राष्ट्रद्रोह के आरोप की पीड़ा किसी को नही झेलनी पड़ती। जितनी आप कल्पना कर सकते हैं उन लगभग सभी सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समस्याओं का अंत हो गया होता। परंतु एक अनोखी घटना यह घटी कि देश की अधिकांश राजनैतिक पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्ष इस फैसले के खिलाफ खड़े हो गए और अपने पद के बलबूते इस चर्चा को न तो संसद में आगे बढ़ने दिया और न ही मीडिया के जरिये इसे देश की जनता के सामने आने दिया।
आर्थिक आजादी के बिना वोट का राजनैतिक अधिकार व्यर्थ है। ऐसे में जब कि दुनिया के सभी काम जो हाथ से किये जा सकते हैं वे मशीनों से अब करना सम्भव हो गया है। दिमाग का काम कम्प्यूटर से होने लगा हो तो प्रत्येक नागरिक को काम का अधिकार नहीं दिया जा सकता। ऐसे में जीने के लिए धन की दैनिक जरूरत कैसे पूरी होगी? रोजगार की लेने की जिद्द करना तो आज देशद्रोह की श्रेणी में आना चाहिए। क्योंकि मशीन और कम्प्यूटर से काम छीन कर हर हाथ को काम बांटने की जिद्द से हम दुनिया की अर्थव्यवस्था में पिछड़ जाएँगे। आर्थिक और वित्तीय जरूरतों की पूर्ति के लिए इस नई क्रांतिकारी सोच का परिणाम “वोटरशिप” है। संसद में उस समय श्री भरत गांधी नाम के एक राजनैतिक चिंतक ने यह वोटरशिप का प्रस्ताव संसद में सांसदों के सामने रखा था।
18 वर्ष की आयु पा चुके वे लोग जो पहली बार वोट करने जा रहे हैं या वे लोग जो राजनीति को देश की सेवा का एक मार्ग चुनते हैं ऐसे लोगों को वोटरशिप के बारे में विस्तार से जानना चाहिए। वोटरशिप की शिक्षा के लिए हमें देश भर में ग्राम पंचायत स्तर पर प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। आप किसी भी राजनैतिक दल के वोटर क्यों न हो, वैज्ञानिक प्रणाली से आपको अपनी राजनैतिक शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए।
स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के लम्बे संघर्ष के बाद अंग्रेज 1947 में भारत छोड़कर गए। उसके बाद 1950 में भारत का संविधान बना। संविधान ने भारत के सभी लोगों को एक समान माना और सभी को लोकतंत्र निर्माण में भागीदारी देते हुए वोट का अधिकार दिया। चाहे वह अंबानी, आडानी, टाटा बिरला हों, चाहे खेती-किसानी करने वाला या फिर कोई मजदूर हो। अंग्रेजों के जमाने में आर्थिक विषमता इसलिए पैदा हुई थी क्योंकि उन्होंने भारत की जनता पर जुल्म करने वाले अपने चाहतों को जागीरदार और जमींदार बनाकर जनता की जमीन और धन हड़प कर दे दिया था। अंग्रेजों के जाने के बाद अंग्रेजों के चाहतों से जनता की जमीन और धन-दौलत वापस नहीं ली गई। केवल काले व स्वदेशी अंग्रेजों ने गोरे अंग्रेजों की जगह ले ली और भारत की जनता की धन-दौलत देश की आजादी के बाद भी सत्ता के कब्जे में रह गई। लोकतंत्र का स्थान नेतातंत्र ने ले लिया। असली लोकतंत्र तब ही जमीन पर उतरेगा जब प्रत्येक वोटर को अपने हिस्से की आधी धनराशि खर्च करने का अधिकार वोटरशिप के द्वारा मिलेगा।
अंग्रेजों के जाने के बाद उनकी बनाई दमनकारी व्यवस्था आजादी के बाद भी चलती रही। अब काले अंग्रेज जनता की जमीन और धन-दौलत पर कुंडली मार कर बैठ गए। होना यह चाहिए था कि अंग्रेजों के जाते ही देश की सारी धन-दौलत देश के सारे नागरिकों में बराबर-बराबर बांट दी जाती। यदि ऐसा होता, तो आज अमीरी-गरीबी की इतनी बड़ी खाई न होती, किसान आत्महत्या न करते। देश के 80 करोड़ लोग गरीबी की जिंदगी जीने के लिए विवश ना होते।
अंग्रेजों ने देश को आर्थिक गुलामी की राह पर धकेला था अतः 1947 के बाद देश की जनता को आर्थिक आजादी नहीं मिली। मिली तो केवल जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा की राजनीति करने वाले मुट्ठी भर नेताओं के काम आने वाली राजनीतिक आजादी। यह खुलासा संसद में तब हुआ, जब 137 सांसदों ने विश्वात्मा भरत गांधी के राजनीति सुधार के प्रस्तावों को संसद में पेश किया। तब दुनिया को यह जानकारी हुई कि अगर 1947 के बाद यदि जनता की जमीन और संसाधनों का किराया जनता को वोटरशिप के रूप में प्रत्येक वोटर के देने की व्यवस्था बन जाती, तो कई हजार रूपए हर परिवार को मिल रहे होते। लेकिन यह व्यवस्था नहीं बन पायी।
1947 से अगर वर्तमान तक पूरी राशि को अगर जोड़ा जाये, तो आज यह रकम लगभग 16 लाख, 8000 करोड़ रूपए बनती है। यह घोटाला जानबूझकर चलता रहा, क्योंकि अंग्रेजों के जमाने में आम जनता की जगह जमीन और धन-दौलत कब्जा करने वाले लोगों ने चंदा देकर राज करने वाली पार्टियों के नेताओं का मुंह बंद रखा। राजव्यवस्था और अर्थव्यवस्था पर दर्जनों पुस्तकों के लेखक व समकालीन राजनीति सुधारक विश्वात्मा भरत गांधी ने जनता को आर्थिक आजादी दिलाने के लिए विगत 25 वर्षों से आंदोलन छेड़ रखा है। आम जनता की धन दौलत, जमीन और संसाधनों पर से कब्जाधारियों से कब्जा छुड़ाने के लिए नयी पार्टी बनाई गयी है, जिसका नाम है- वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल। 72 साल से जिस अधिकार को दबा कर रखा गया था, वह अधिकार जनता को वापस दिलाने के लिए यह पार्टी चुनाव के मैदान में आ गई है और बाकी पार्टियों के कान खड़े हो गए हैं।
युवा जज्बे तथा जुनून से भरे विश्वात्मा भरत गांधी विश्व परिवर्तन मिशन के संस्थापक भी है। मैं विश्वात्मा भरत गांधी को पिछले 20 वर्षों से भली-भांति जानता हूँ। इस युवा ने पिछले लगभग 25 वर्ष पूर्व संकल्प लिया था कि वह जब तक विवाह नहीं करेंगे जब तक प्रत्येक वोटर के लिए वोटरशिप अधिकार कानून नहीं बन जाता है। उच्च शिक्षा प्राप्त विश्वात्मा भरत गांधी ने एक संन्यासी की तरह अपना पूरा जीवन वोटरशिप के समर्पित कर दिया है। उन्होंने अपनी कोई भौतिक चल तथा अचल सम्पत्ति नहीं बनायी है। वह देश भर में जाकर मिशन के परिवारों में रहकर अपने वोटरशिप के आन्दोलन को निरन्तर गति दे रहे हैं। वह अब 51 वर्ष की अवस्था तक विवाह न करने के संकल्प को पूरी दृढ़ता के साथ निभा रहे हैं। वोटरशिप को उन्होंने राष्ट्रीय स्वीकार्ता दिलायी है। उनका यह पक्का विश्वास है कि अति आधुनिक युग में देश स्तर पर तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी उन्मूलन का वोटरशिप अधिकार कानून ही एकमात्र समाधान है।
मीडिया के गैरजिम्मेदारना भूमिका के विपरीत कुछ साहसी युवा पत्रकार अपने दायित्व को छोटे लेकिन सच्चे राष्ट्र भक्त चैनलों समाचार पत्रों तथा सोशल मीडिया के माध्यम से बखूबी पूरे साहस से निभा रहे हैं। मेरी इस लेख के माध्यम से इन सच्चे मीडिया बन्धुओं से अपील है कि वे वोटरशिप को इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता समझकर इसको मुख्य मुद्दे के रूप में देश भर में प्रचारित-प्रसारित करने की कृपा करें। मीडिया के बन्धु भी देश के एक जिम्मेदार वोटर भी है। वह वोटर के एक-एक की वोट की ताकत को भली-भांति समझते हैं। वोटर ही देश के असली मालिक है। यह नेतातंत्र तथा लोकतंत्र के बीच का महाभारत है। अब हमें फैसला करना है कि हम पाण्डव बनकर सत्य का साथ देते हैं या अन्यायी बनकर कौरव का साथ देते हैं?
बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2
एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ-226025