(राजेश सारस्वत), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
अजीब है दुनिया, एक ऐसा चक्र है जिसमे अनेकों परतें बाहर से लगी हुई है जो वास्तविकता के ऊपर आवरण के रूप में स्थित है। जो हमे दिखता है वास्तव में वो होता नहीं है हमें वही दिखता है जो हम सोचते हैं। राम चरित मानस की एक पंक्ति इस बात को बड़े ही अच्छे ढंग से बयाँ करती हैं कि जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी तैसी। यह पंक्तियाँ केवल मात्र भगवान् के स्वरूप को ही नहीं बल्कि हर एक वस्तु जो सजीव निर्जीव है सबको चरितार्थ करती हैं। हम अपनी बात करें या किसी दूसरे की बात करें, जिसको जितना खोजते जाते हैं उसको उतना ही जानते जाते हैं। हर व्यक्ति के अंदर कुछ अवगुण होते हैं या यूँ कहें कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ गुण अवश्य होते हैं। हम जिसको जितना जानने का प्रयास करते हैं उतना ही उसमें कुछ खोज पाते हैं।
वेदांत दर्शन के विवर्तवाद का सिद्धांत कहता है कि जब हम कभी अंधेरे में रस्सी को देखते हैं तो हमें रस्सी में सांप होने का भ्रम होता है। असल में वह रस्सी ही होती है ठीक वैसे ही हमे कई बार एक अच्छे इन्सान में शैतान और बुरे आदमी में भी अच्छा आदमी नज़र आता है क्योंकि हमारी सोच जिसके प्रति सकारात्मक होती हैं वो बुरा होकर भी अच्छा लगता है और नकारात्मक सोच के कारण एक अच्छा इन्सान भी बुरा नज़र आने लगता है। किसी शायर ने क्या खूब कहा कि हर आदमी में होते हैं दस बीस और आदमी जिसे भी देखो दस बीस बार देखो। कभी कोई किसी के प्रति मन में ऐसा सवाल उत्पन्न करता है कि जो जैसा दिखता है वह वैसा क्यों नहीं होता? अधिकतर ऐसा देखा भी जाता है कि जो इंसान जैसा होता है वह वैसा दिखता नहीं है।
समाज में व्यक्ति की एक अलग पहचान या छवि होती है और उसी व्यक्ति के घर में वह व्यक्ति किसी और रूप में पाया जाता है या मशहूरहोता है अर्थात इस दुनिया के रंग मंच पर कुछ और ही दिखाया जाता है और पर्दे के पीछे कुछ और ही होता है। मेरा अपना निजी अनुभव भी रहा है कि एक ही आदमी को मैंने कई रूप धारण करते देखा है कुछ तो समय और परिस्थिति के अनुरूप रूप बदलते हैं जो कुछ हद तक मान्य भी है लेकिन कुछ लोग तो एक दम से विपरीत नज़र आते हैं जो छवि उनकी समाज में बनी हुई है, जो हमारा भ्रम नहीं अपितु विभ्रम होता हैं। विभ्रम का अर्थ यह हुआ कि जिसमें जो बात है ही नहीं हम उसमें उस बात को मान लेते हैं अर्थात रस्सी में सांप का आभास होना तो भ्रम हुआ लेकिन अगर रस्सी है ही नहीं फिर भी सांप का अनुमान लगाना विभ्रम है।
मनुष्य के ऊपर भी उसके व्यवहार के कारण अनेकों परतें लगी होती हैं हम जिसको जितना जानने की कोशिश करते हैं उतना ही समझ पाते हैं। यह हमारी सोच पर निर्भर करता है। हमें चाहिए कि हम उन दस बीस आदमियों में से आठ दस अच्छे आदमियों को खोज कर और आत्मसात करते हुए, प्रत्येक के प्रति सकारात्मक सोच रख कर उसके कुछ गुणों का आधान करके खट्टे अंगूरों और बुरे लंगूरों से दूर रहते हुए जिंदगी में आगे बढ़ते हुए पीछे आने वाले नव युवकों को एक अच्छा संदेश एक अच्छा आदर्श स्थापित करें।
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