मदन सुमित्रा सिंघल, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
महफ़िल मे सब मस्त
हजुरे आला क्यों त्रस्त?
नजरें झुकी हुई है
सांसें रुकी हुई है।
लिया उधार
देख लिया सरदार
बदल गया किरदार
कम हो गई रफ्तार
तीर अंदाजी
उल्टी पड़ गई
सरदारनी थप्पड़ जड़ गई
शर्म तो बेच खाई
फिर क्यों अंगड़ाई
दुबारा नही रुसवाई
अल्लाह की दी दुहाई
बदल लूंगा अपने आप को
भुगत लूंगा मैं संताप को
उधार नहीं दगा नहीं
भुगत लूंगा मैं श्राप को
फिर वो धमकाने आई
हाथ जोड़ सामने आई
तीर अंदाजी छोड़ दूंगी
सूद समेत वापस दूंगी
अब मैं नहीं भगुंगी
कभी ठगी नहीं करूंगी
हजुरे आला क्यों त्रस्त?
नजरें झुकी हुई है
सांसें रुकी हुई है।
लिया उधार
देख लिया सरदार
बदल गया किरदार
कम हो गई रफ्तार
तीर अंदाजी
उल्टी पड़ गई
सरदारनी थप्पड़ जड़ गई
शर्म तो बेच खाई
फिर क्यों अंगड़ाई
दुबारा नही रुसवाई
अल्लाह की दी दुहाई
बदल लूंगा अपने आप को
भुगत लूंगा मैं संताप को
उधार नहीं दगा नहीं
भुगत लूंगा मैं श्राप को
फिर वो धमकाने आई
हाथ जोड़ सामने आई
तीर अंदाजी छोड़ दूंगी
सूद समेत वापस दूंगी
अब मैं नहीं भगुंगी
कभी ठगी नहीं करूंगी
पत्रकार एवं साहित्यकार शिलचर, असम