राजमाता जीजाबाई की 352वीं पुण्यतिथि पर "हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता : विविध आयाम" विषयक अंतरराष्ट्रीय संवाद आयोजित

डॉ. शैलेश शुक्ला, ऑस्ट्रेलिया भारत की ऐतिहासिक सांस्कृतिक चेतना की प्रेरणास्त्रोत, मराठा स्वराज्य की संस्थापिका और छत्रपति शिवाजी महाराज की मातृशक्ति राजमाता जीजाबाई की 352वीं पुण्यतिथि के पावन अवसर पर “हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता : विविध आयाम” विषय पर केंद्रित एक अंतरराष्ट्रीय संवाद का भव्य आयोजन किया गया। यह आयोजन ‘न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन’ एवं ‘अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन’ के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ, जो हिंदी पत्रकारिता के 200वें वर्ष के उपलक्ष्य में 30 मई 2025 से 30 मई 2026 तक मनाए जा रहे ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता वर्ष – 2025-26’ के अंतर्गत विविध कार्यक्रम श्रृंखला का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और वैचारिक रूप से समृद्ध भाग रहा। यह आयोजन न केवल हिंदी भाषा, साहित्य और पत्रकारिता को समर्पित था, बल्कि इसने मातृत्व, नारीशक्ति, स्वराज्य, आत्मगौरव और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को आधुनिक विमर्श से जोड़ने का अभिनव प्रयास भी किया।

मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित हिंदी पत्रिका मधुराक्षर के संस्थापक-संपादक और लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, फगवाड़ा के हिंदी विभाग में सह-आचार्य डॉ. बृजेन्द्र अग्निहोत्री ने अपने सघन और विद्वतापूर्ण वक्तव्य में हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता की ऐतिहासिक विकास-यात्रा को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि हिंदी पत्रकारिता का उद्भव ही साहित्यिक चेतना के साथ हुआ था और ‘उदन्त मार्तण्ड’ से लेकर आज तक की पत्रकारिता में भाषा की आत्मा, संवेदना की तीव्रता और सामाजिक सरोकारों की प्रखरता बनी रही है। डॉ. अग्निहोत्री ने वर्तमान डिजिटल युग में भाषा के बदलते स्वरूपों, ऑनलाइन माध्यमों में साहित्य की उपस्थिति, और व्यावसायिकता के बढ़ते दबावों के बीच साहित्यिक गुणवत्ता की रक्षा करने के उपायों पर भी गहनता से प्रकाश डाला।

इस अंतरराष्ट्रीय संवाद में हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भों पर गहन चिंतन किया गया, जिसमें प्रमुख रूप से पत्रकारिता की साहित्यिक संवेदना, भाषा का सौंदर्यशास्त्र, विमर्श की परंपरा, सामाजिक चेतना और डिजिटल युग में साहित्य के संप्रेषण की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा हुई। संवाद की विशेष बात यह रही कि इसमें पत्रकारिता को केवल सूचना का माध्यम नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक-वैचारिक दायित्व के रूप में देखा गया, जिसमें साहित्य की भूमिका केंद्रीय है। राजमाता जीजाबाई के व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रेरणा लेते हुए यह भी प्रतिपादित किया गया कि किस प्रकार स्त्री-चेतना, राष्ट्र निर्माण, स्वाभिमान और आत्मबल के मूल्य साहित्यिक लेखन और पत्रकारिता के माध्यम से नई पीढ़ियों तक प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित किए जा सकते हैं।

कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार, संपादक, साहित्यकार और सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह के वैश्विक प्रधान संपादक डॉ. शैलेश शुक्ला द्वारा अत्यंत गहन, मर्मस्पर्शी और प्रभावशाली शैली में किया गया। उन्होंने हिंदी की पत्रकारिता में साहित्यिक गहराई, भाषिक गरिमा और विचारशील विमर्श की प्राचीन परंपरा को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए यह रेखांकित किया कि साहित्यिक पत्रकारिता न केवल समाज के सौंदर्यबोध को जाग्रत करती है, बल्कि यह विचारशील नागरिकता की आधारशिला भी रखती है। उनके विचारों में यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि हिंदी पत्रकारिता को आज जिस नैतिक दृढ़ता, भावनात्मक गहराई और वैचारिक स्पष्टता की आवश्यकता है, वह साहित्यिक परंपरा से ही प्राप्त हो सकती है।

संवाद के आयोजन में मुख्य संयोजक के रूप में श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला (संस्थापक-निदेशक, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन) की केंद्रीय भूमिका रही, जिन्होंने पूरी आयोजन प्रक्रिया को संगठित, समन्वित और सशक्त स्वरूप में प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की रणनीतिक योजना, डिजिटल मंचों का संचालन, वैश्विक संवाद की पृष्ठभूमि और मीडिया समन्वय में उन्होंने अत्यंत कुशल नेतृत्व प्रदान किया। अध्यक्ष और संरक्षक के रूप में डॉ. शैलेश शुक्ला की दिशा और नेतृत्व से संवाद को विचार-गंभीरता और वैचारिक अनुशासन प्राप्त हुआ। राष्ट्रीय संयोजक डॉ. कल्पना लालजी (संपादक – सृजन मॉरीशस) ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों के साथ संवाद सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाई। संयोजन और समन्वय की दृष्टि से भी यह आयोजन उल्लेखनीय रहा। प्रशांत चौबे (संस्थापक – अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन), डॉ. सोमदत्त काशीनाथ (संपादक – सृजन मॉरीशस), डॉ. हृदय नारायण तिवारी (एकलव्य विश्वविद्यालय), प्रो. रतन कुमारी वर्मा (जगत तारन गर्ल्स डिग्री कॉलेज), कपिल कुमार (संपादक – सृजन यूरोप), अरुण नामदेव (संपादक – सृजन अमेरिका) और शालिनी गर्ग (संपादक – सृजन कतर) जैसे सह-संयोजकों ने देश और विदेश से जुड़े सहभागियों के साथ संवाद को सहज, प्रभावी और सुसंगठित बनाया। मार्गदर्शक के रूप में त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. विनोद कुमार मिश्रा की विद्वत्ता ने संवाद को वैचारिक स्थिरता प्रदान की।

इस संवाद की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि इसमें केवल विचारों का आदान-प्रदान नहीं हुआ, बल्कि साहित्यिक पत्रकारिता के भविष्य की एक स्पष्ट दिशा और दृष्टिकोण उभरा। कार्यक्रम में कई प्रसिद्ध पत्रिकाओं के संपादक, हिंदी साहित्य के आचार्यगण, शोधार्थी एवं पत्रकार सम्मिलित हुए। प्रतिभागियों ने संवाद के अंत में साझा किया कि यह आयोजन हिंदी पत्रकारिता को केवल एक पेशा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, वैचारिक और सामाजिक मिशन के रूप में पुनर्परिभाषित करने का कार्य कर रहा है। यह विमर्श स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि साहित्यिक पत्रकारिता, जो कभी छायावादी, प्रगतिशील और नई कविता आंदोलनों की वाहक रही, अब डिजिटल माध्यमों से होते हुए वैश्विक विमर्श का हिस्सा बन रही है।

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