वीर तेजाजी चालीसा
डॉ. दशरथ मसानिया,  शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
माघ शुक्ला चतुर्दशी,गुरुवार का आन।
सहस एक सौ तीस में,प्रगटे तेज महान।।
जय जय  तेजाजी महराजा।
करते जग के पूरण काजा।।1
उदय राज खड़नाल बसाया।
चौबिस ग्रामा राज चलाया।।2
नागावंश  जाट परिवारा।
मर्यादा जीवन  रखवारा।।3
एकादश शिव का अवतारा।।
बनकर तेजा देही धारा।।4
माघी शुक्ला चौदस आई।
तेजल वीरा जन्में भाई।।5
राजल बहिना पिता तहाड़ा।
रामा कुंवरी  बेटा प्यारा।।6
चमक चेहरा देह विशाला।
माथे तिलक हाथ में भाला।।7
बालपने में  ब्याह रचाया।
पेमल देवी वाम बनाया।।8
पुष्कर नगरी पुष्कर घाटा।
पुष्कर पूनम सुंदर  ठाटा।।9
खाजू काला बेर रचाया।
पितु तिहाड़ ने मार गिराया।।10
जेठ मास में वर्षा आई।
मारवाड़ में  होय बुवाई।।11
जल्दी उठकर तेजा आये।
हल बैलों को साथ लिवाये।।12
वेगा वेगा करी  बुवाई  ।
कठिन परिश्रम स्वेद बहाई।।13
दूजा पहर लगा था भाई।
तेजल  गहरी भूख सताई।।14
भौजी भोजन देर से लाई।
क्रोधित बोले तेजल भाई।15
इतनी बेरा कहां लगाई।
सुनकर भौजी भी भर्राई।16
पत्नी की जब याद दिलाई।
बाल ब्याह की बात बताई।।17
हल को छोड़ा घर को आये।
सार कथा सब मां से पाये।।18
राज तबीजी राजल ब्याही।
बैठे घोड़ी पहुंचे जाई ।1।9
बहिना ने बहु आदर कीना।
दूजे दिन घर कीन पयाना।।20
दिया धोक मां से बतराये।
आयसु मांग घोड़ी सजाये।।21
लीलन घोड़ी कर तैयारी।
चाबुक एक तुनका मारी।।22
जलता नाग राह में देखा।
आग बचाया भाले फेंका।।23
विरह विलखते डसना चाहा।
वचन दिया जब वापिस आना24
नगर पनेरा कीन पयाना।
पहली बार शहर को जाना।।25
घोड़ी टाप से गाय बिदानी।
दूध दोहती सास रिसानी।।26
बोल कुबोल हृदय में लाये।
सुनकर वीरा वापस आये।।27
हाथ जोड़ के पेमल बोली।
नाथ दया कर मोपे  थोरी।।28
लाछा गुजरी सखी हमारी।
जो नित भक्ती करे तुम्हारी।।29
तब तेजा लाछा घर आये।
मान भाव वे पूरा पाये।।30
सोय रात तब गाय चुराई।
सुनकर गुजरी अति घबराई‌।।31
करुणा देखी तेजा धाये।
सब गौवन को लाय छुड़ाये।।32
लड़े अकेले चौर अनेका।
एक एक को मारा फेंका।।33
अंग अंग से खून बहाये।
फिर तेजल तक्षक ढिंगआये।34
लहू वीर तन घायल देखा।
वादा पूरा करते तेजा।।35
तेज वीर ने जीभ निकाली।
तक्षक दो दो डंकन मारी।।36
धरम सनातन के रखवारे।
पाखंडों को मूल उखारे।।37
सूरसुरा में लड़े लड़ाई।
गौवन हित वीरन गति पाई।।38
भादों शुक्ला दसमी आना।
ग्यारह साठा कीन पयाना।।39
जो तेजल चालीसा गावे ।
मौत अकाला  देव बचावे।।40
गांव गांव मंदिर बने, पूजा होति अपार।
दीन दुखी सुख पात हैं,कहत हैं कवि विचार।।
दरबार कोठी 23, गवलीपुरा आगर, (मालवा) मध्यप्रदेश
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