बस, एक बार


महेन्द्र सिंह वर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।


गिरे हुये को उठा ले,

सिने से अपने लगा ले

दिल में तेरे सकून आएगा,

बदले जाने कितनी दूआ पाएगा

जरूरतमंदो की सहायता करेगा,

खुशी से मन भरेगा

आंतरिक खुशी मिलेगी हसीं,

खुद पर आएगा यकीं

मैंनें अच्छा काम किया,

इन्सानियत का फर्ज़ निभाया

अमीर-गरीब, ऊँच-नीच

सबको समझ समान

सहायता कर समान,

पूरे होंगें तेरे सब अरमान

दूसरो के लिए कुछ करके तो देख

बस, एक बार

 

छोड़ना है तो क्रोध को छोड़

तोड़ना है तो उस दीवार को तोड़

जो इंसान को बांटती है

काटना है तो उन हाथो को काट

जो नारी की ओर बढते हैं

फोड़ना है तो उन आँखो को फोड़

जो नारी पर बुरी नज़र डालती है

बिरोध करना है तो उस अत्याचार का कर,

जो गरीब पर होता है

हँसना है तो उन नेताओं पर हँसो,

जो अपने को भगवान् समझ बैठे है

रोना है तो उन अमीरों पर रोओ

जो धन-दौलत को सदा के लिए समझ बैठे हैं

ऐसा करके तो देख

बस, एक बार 

 

गुरूजनों और वड़ो को आदर देकर तो देख ले

जिन्दगी तेरी सम्भर जाएगी,

अंधेरी जिन्दगी में रोशनी आएगी

जो मार्ग बताएगी,

मंज़िल सफल होती नज़र आएगी

गुरू दीप की तरह जलता है,

असफलता को सफलता में बदलता है

पहला स्थान गुरू का,

भगवान् का है दूजा

कवीर ने भी गुरू को

भगवान् से पहले पूजा

गुरू है भगवान् तक पहुंचने की सीढ़ी

इस कथन को याद रखेगी कई पीढ़ी

ऐसा करके तो देख बस,

एक बार

 

भाटलुधार, सोमनाचनी ( बालीचौकी) मण्डी, हिमाचल प्रदेश

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