मनमोहन शर्मा, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
देखकर यह पर्व
महसूस करती वह गर्व
श्रद्धा भक्ति भरा अपनों पर
साकार होते सपनों पर
बनना चाहती है हिस्सा
भाईयों में बँटते बोझ का
जिसे वह उठा नहीं सकती
पर उठाती उसी बल
मन ही मन
चल पड़ती है मीरा सी
बेपरवाह
नंगे पाँव कान्हा के गाँव
सब नशे हैं फीके
अगर नशा हो भक्ति का
फिर क्या काँटा,क्या फूल?
क्या शूचि, क्या धूल?
गाती चलती भजन
अपने होंठ सीले
नाच उठती झूम झूम
बिन हाथ हिले
हर नजर से बेखबर
भक्ति भरी डगर
फूल बरसा मुस्कराते
देव, यक्ष, गंधर्व
देखकर यह पर्व
महसूस करती वह गर्व
कुसुम्पटी शिमला-9
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