डॉ. अ. कीर्तिवर्धन, शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
कुछ दोष अपना भी है,
सरकारों को दोष न दो,
वोट दिया जब अपराधी को,
नेता को तुम दोष न दो।
जो बोया है वही उगेगा,
बबूल वृक्ष पर आम न होगा,
केवल मीठे आमों खातिर,
बबूल को भी दोष न दो।
क्यों सोते हैं भूखे बच्चे,
फटेहाल फुटपाथों पर,
प्रश्न खडा है सबके सम्मुख,
बस सत्ता को दोष न दो।
कुछ लोगों ने घर को बाँटा,
माँ बाप को बाँट दिया,
कुछ बच्चों को भी बाँट रहे हैं,
राम कृष्ण को दोष न दो।
माना घोर अधर्म हो रहा,
व्यभिचार बढता जाता,
अर्थ प्रधान जगत में भैया,
सब पुरूषों को दोष न दो।
राम राज की बात करें जो,
खुद रावण बनकर घूम रहे,
सीता हरण था मर्यादाओं का,
भ्रात लक्ष्मन को दोष न दो।
मुफ्त में सब कुछ पाने की चाह,
आमद दोगुनी काम जरा सा,
पहले खुद के भीतर झांको,
मँहगाई को दोष न दो।
भ्रष्ट आचरण, रिश्वतखोरी,
बेईमानी के जो पोषक,
शिक्षा, स्वास्थय व्यापार बनाया,
मानवता को दोष न दो।
विद्यालक्ष्मी निकेतन, 53-महालक्ष्मी एन्क्लेव, मुज़फ्फरनगर उत्तर प्रदेश